सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र देश के सभी भागों के प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के सेवारत अध्यापकों हेतु विशिष्ट विषय-वस्तुओं से संबंधित कार्यशालाएं आयोजित करता है । इन कार्यशालाओं द्वारा अध्यापकों को कक्षा की पढ़ाई की उन नवीनतम पद्धतियों से परिचित कराया जाता है, जो बच्चों में रचनात्मकता तथा संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करती हैं । ये कार्यशालाएं शिक्षा के प्रति एक समेकित दृष्टिकोण प्राप्त करने में अध्यापकों की सहायता करती हैं तथा कक्षा की पढ़ाई में सांस्कृतिक तत्वों को समावेश करने की कार्य-प्रणालियां प्रदान करती हैं ।
उनके उद्देश्य ये भी हैं :
इन कार्यशालाओं की अवधि 10 से 15 दिन की होती है जो कार्यशाला की विषयवस्तु पर निर्भर करती है। उपर्युक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक कार्यशाला में कई गतिविधियां शामिल की जाती हैं।
अध्यापक कार्यशाला के विशिष्ट उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए फ़ोलियो (पन्ना) चार्ट, पुस्तिकाओं आदि के रूप में अपनी शैक्षिक सहायक सामग्री को तैयार करते हैं । उदाहरणार्थ, ‘समाजोपयोगी उत्पादक कार्य/कार्यानुभव’ पर कार्यशाला के दौरान शिल्प कलाएं सीखने में निहित चरणों पर एक पुस्तिका अथवा ‘प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में स्कूलों की भूमिका’ पर कार्यशाला में वास्तुकला के तुलनात्मक अध्ययनों पर शैक्षिक सहायक सामग्री तैयार की जाती है । इस शैक्षिक सहायक सामग्री का ध्येय कला तथा संस्कृति के अध्ययन के प्रति शैक्षिक दृष्टिकोण अपनाना तथा औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में उसका निवेश करना है ।
अध्यापक कार्यशाला की विषय वस्तु पर आधारित परियोजनाओं का चयन करते हैं तथा सर्वेक्षण पत्रकों, संसाधन पुस्तकों का प्रयोग करते हुए आंकडे एकत्रित करते हैं और परियोजना विवरण तैयार करते हैं ।
प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत के प्रति बोध उत्पन्न करने हेतु प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम अथवा शैक्षिक खेलों के अंतर्गत कुछ चुने गए प्रश्नों से अध्यापकों को परिचित कराया जाता है । इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए श्रव्य-दृश्य प्रस्तुतीकरण भी किए जाते हैं ।
स्थानीय तौर पर उपलब्ध सस्ती सामग्री का उपयोग करते हुए परंपरागत शिल्पकार प्रशिक्षार्थियों को प्रदेश की स्थानीय शिल्पकला सिखाते हैं ।
राष्ट्रीय एकता तथा संगीत व विभिन्न भाषाओं में निहित सौन्दर्य के प्रति सराहना की भावना विकसित करने हेतु अध्यापक प्रशिक्षार्थियों को भारत की विभिन्न भाषाओं तथा प्रदेशों के कुछ चुने हुए गीत सिखाये जाते हैं ।
कार्यशाला के दौरान ऐतिहासिक महत्व के स्थानों जैसे स्मारकों तथा संग्रहालय, प्राकृतिक महत्व के स्थानों, जैसे- अभयारण्यों और प्राकृतिक उद्यानों की शैक्षिक यात्राएं आयोजित की जाती हैं । प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में निहित सुन्दरता की समझ उत्पन्न करने और अवलोकन कुशलताएं विकसित करने हेतु इन यात्राओं के लिए विशिष्ट कार्य-पत्रक तैयार किए जाते हैं । छात्रों को ऐसी यात्राओं पर ले जाते समय इसी प्रकार के कार्यपत्रकों को तैयार करने व प्रयोग में लाने हेतु अध्यापकों को प्रोत्साहित किया जाता है । इन यात्राओं के दौरान प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में छात्रों की भूमिका पर भी चर्चा की जाती है ।
कार्यशालाओं के दौरान अध्यापकों को शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक क्षेत्रों से संबद्ध छात्रों के साथ संपर्क स्थापित करने का सुअवसर प्राप्त होता है । ऐसे सुअवसर, कार्यशाला के दौरान सीखी कुशलताओं को क्रियान्वित करने में अध्यापकों की सहायता करते हैं । यह अन्त:क्रिया 3-4 दिनों तक कार्यशाला के दौरान चलती है, जिसमें प्रत्येक अध्यापक छात्रों के साथ एक के साथ दस या बीस के अनुपात में कार्य करता है । कभी-कभी छात्र कार्यशाला के स्थान पर आते हैं और कभी-कभी अध्यापकों को स्कूलों अथवा संगठनों में भी ले जाया जाता है ।
प्रत्येक कार्यशाला के पश्चात अध्यापकों के बोध को आंकने तथा अर्जित ज्ञान के प्रति उनकी समझ का परीक्षण करने हेतु मूल्यांकन किया जाता है । प्रशिक्षण के पश्चात् यह नियमित पुनर्निवेशन प्रशिक्षण की तकनीकों को सुधारने हेतु दृष्टिकोणों व कार्यप्रणालियों को विकसित करने में सहायता करता है ।