शिक्षा को सभी स्तरों पर सामाजिक परिवर्तनों का एक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है । आज देश में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य लोगों को प्रजातांत्रिक सामाजवादी, धर्म निरपेक्ष समाज के लिए तैयार करना है । विद्यालयों में “समाजोपयोगी उत्पादक कार्य/कार्य अनुभव” कार्यान्वित करने का उद्देश्य इसी लक्ष्य की प्राप्ति करना है । इसलिए यह विद्यालय पाठयक्रम का एक अभिन्न अंग ही नहीं है, बल्कि अन्य विषयों से भी संबंध रखता है ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के कार्यक्रम के अनुसार, शिक्षा को संस्कृति के साथ जोड़ने हेतु, विशेष बल, बच्चों में निहित प्रतिभा को खोजना एवं उसको रचनात्मक रूप से अभिव्यक्त करना है । इसकी प्राप्ति सीखने-सिखाने की प्रक्रिया एवं पाठयक्रम के पुर्नअनुस्थापन तथा अध्यापकों को विभिन्न स्तरों पर विद्यार्थियों के साथ संबंध स्थापित करने की अभिप्रेरणा द्वारा हो सकती है ।
हमारे देश की हस्तकलाएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर की अमूल्य देन हैं, जो मानव के सौन्दर्य-बोध की आवश्यकता एवं आत्मअभिव्यक्ति की जिज्ञासा का माध्यम है । हस्तकलाओं का वास्तविक महत्व प्रत्येक वस्तु के नयेपन व आश्चर्य में निहित है ।
आज हम न केवल अपनी प्राचीन धरोहर खो रहे हैं बल्कि सामाजिक संरचना के आवश्यक तत्वों का भी ह्रास हो रहा है, जो समाज को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है । विद्यालयों में “समाजोपयोगी उत्पादक कार्य/कार्य अनुभव” देश की समृद्ध धरोहर एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के पुर्नगठन और इनको पुर्नजीवित करने के अवसरों को प्रदान करता है तथा विद्यार्थियों में रचनात्मकता को भी प्रोत्साहित करता है । “समाजोपयोगी उत्पादक कार्य/कार्य अनुभव” कार्यशाला के दौरान अध्यापक 3-4 शिल्पकलाओं को गहन रूप से सीखते है । सामान्यत: मिट्टी के बर्तन बनाना, मिट्टी के खिलौने बनाना, पेपर मैशी, मुखौटे बनाना, बांधनी, रंगोली, बैंत का कार्य, जिल्दसाजी, कागज के खिलौने बनाना आदि शिल्पकलाएं सिखाई जाती है । सभी भाषाओं के प्रति सम्मान तथा राष्ट्रीय एकता की भावना जगाने हेतु राष्ट्रीय भाषाओं के गीत सिखाए जाते हैं । भारतीय हस्तशिल्प एवं संस्कृति से संबंधित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान तथा स्लाइड-प्रदर्शन किए जाते हैं तथा पाठयक्रम शिक्षण में रचनात्मक गतिविधियों हेतु सीसीआरटी की शैक्षिक सामग्री का उपयोग किए जाने पर भी सत्र आयोजित किए जाते हैं ।