भरतनाट्यम नृत्य banner image

भरतनाट्यम नृत्य

भरतनाट्यम् नृत्‍य 2000 साल से व्‍यवहार में है । भरतमूनि के नाट्यशास्‍त्र (200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी सन्) के साथ प्रारम्‍भ हुए अनेक ग्रंथों (पुस्‍तकों) से इस नृत्‍य रूप पर जानकारी प्राप्‍त होती है । नंदिकेश्‍वर द्वारा रचित अभिनय दर्पण भरतनाट्यम् नृत्‍य में, शरीर की गेतिविधि के व्‍याकरण और तकनीकी अध्‍ययन के लिए ग्रंथीय (पुस्‍तकीय) सामग्री का एक प्रमुख स्रोत है । यहां प्राचीन काल की धातु और पत्‍थर की प्रतिमाओं तथा चित्रों में इस नृत्‍य रूप के विस्‍तूत व्‍यवहार के दर्शनीय प्रमाण भी मिलते हैं । चिदम्‍बरम् मंदिर के गोपुरमों पर भरतनाट्यम् नृत्‍य की भंगिमाओं की एक श्रृंखला और मूर्तिकार द्वारा पत्‍थर को काट कर बनाई गई प्रतिमाएं देखी जा सकती है । अनके मंदिरों में मूर्तिकला में नृत्‍य के चारी और कर्णा को प्रस्‍तुत किया गया है और इनसे इस नृतय का अध्‍ययन किया जा सकता है ।

भरतनाट्यम् नृत्‍य को एकहार्य के रूप में भी जाना जाता है, जहां नर्तकी एकल प्रस्‍तुति में अनेक भूमिकाएं करती है, यह कहा जाता है कि 19वीं सदी के आरम्‍भ में, राजा सरफोजी के संरक्षण के तहत् तंजौर के प्रसिद्ध चार भाईयों ने भरतनाट्यम् के उस रंगपटल का निर्माण किया था, जो हमें आज दिखाई देता है ।

देवदासियो द्वारा इस शैली को जीवित रखा गया । देवदासी वास्‍तव में वे युवतियां होती थीं, जो अपने माता-पिता द्वारा मंदिर को दान में दे दी जाती थी और उनका विवाह देवताओं से होता था । देवदासियां मंदिर के प्रांगण में, देवताओं को अर्पण के रूप में संगीत व नृत्‍य प्रस्‍तुत करती थीं । इस सदी के कुछ प्रसिद्ध गुरुओं और अनुपालकों (नर्तक व नर्तकियों) का संबंध देवदासी परिवारों से है, जिनमें बाला सरस्‍वती एक बहुत परिचित नाम है ।

भरतनाट्यम् का रंगपटल बहुत विस्‍तृत होता है, जबकि प्रस्‍तुतीकरण में नियमित ढांचे का अनुरकरण किया जाता है । सबसे पहले यहां स्‍तुति-गान होता है । पहला नृत्‍य एकक अलारिप्‍पू है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- फूलों से सजावट । यह ध्‍वनि अक्षरों के पठन के साथ शुद्ध नृत्‍य संयोजन का एक अमूर्त खण्‍ड है ।

अगला एकक, जातिस्‍वरम् एक लघु शुद्ध खण्‍ड है, जो कर्नाटक संगीत के किसी राग के संगीतात्‍मक स्‍वरों के साथ प्रस्‍तुत किया जाता है । जातिस्‍वरम् में साहित्‍य या शब्‍द नहीं होते पर अड्वू की रचना की जाती है, जो शुद्ध नृत्‍य क्रम-नृत्‍य होते हैं । यह भरतनाट्यम् नृत्‍य में प्रशिक्षण के आधारभूत प्रकार हैं ।

भरतनाट्यम् की एक एकल नृत्‍य और बहुत अधिक झुकाव अभिनय या नृतय के स्‍वांग पहले- नृत्‍य पर होता है, जहां नर्तकी गतिविधि और स्‍वांग द्वारा साहितय को अभिव्‍यक्‍त करती है । भरतनाट्यम् नृत्‍य के एक प्रदर्शन में जातिस्‍वरम् का अनुसरण शब्‍दम् द्वारा किया जाता है । साथ में गाया जाने वाला गीत आमतौर पर सर्वोच्‍च सत्‍ता (ईश्‍वर) की आराधना होती है ।

शब्‍दम् के बाद नर्तकी वर्णनम् प्रस्‍तुत करती है । वर्णनम् भतनाट्यम् रंगपटल की एक बहुत महत्‍वपूर्ण रचना है, इसमें इस शास्‍त्रीय नृतय-रूप के तत्‍व का सारांश और नृत्‍य तथा नृत्‍त दोनों का सम्मिश्रण होता है । यहां नर्तकी दो गतियों में जटिल लयात्‍मक नमूने प्रस्‍तुत करती है, जो लय के ऊपर नियंत्रण को दर्शाते हैं और उसके बाद साहितय की पंक्तियों को विभिन्‍न तरीकों से प्रदर्शित करती है । यह वर्णन अभिनय में नर्तकी की श्रेष्‍ठता है और नृत्‍य कलाकार की अंतहीन रचनात्‍मकता का प्रतिबिम्‍ब भी है ।

वर्णनम् भारतीय नृतय में बहुत सुंदर रचनाओं में से एक है।

इस कठिन वर्णनम् के बाद नर्तकी मनोवृतियों की एक विविधता को अभिव्‍यक्‍त करने वाले एकक-अभिनय को प्रस्‍तुत करती है । भाव या रस चेहरे के अभिनय, शरीर की गतिविधियों और हस्‍त मुद्राओं द्वारा अभिव्‍यक्‍त किए जाते हैं । इन नव रसों में से एक रस को चुनकर साहित्‍य में उसकी रचना की जाती है और बाद में उसे नर्तकी द्वारा अभिव्‍यक्‍त किया जाता है । सामान्‍य खण्‍ड कीर्तनम्, कृति पदम् और जावली हैं । कीर्तनम् में मूल-पाठ महत्‍वपूर्ण है, जहां कृति एक रचना है, जिसमें संगीत के पहलू पर प्रकाश डाला जाता है । विशेषता में दोनों प्राय: धार्मिक हैं और राम, शिव, विष्‍णु आदि के जीवन की उपकथाएं प्रस्‍तुत करते हैं । पदम् और जावली प्रेम और बहुधा दैविक पृष्‍ठभूमि पर आधारित होते है ।

भरतनाट्यम् प्रस्‍तुतीकरण का अंत तिल्‍लाना के साथ होता है, जहां इसकी उत्‍पत्ति हिन्‍दुस्‍तानी संगीत के तराना में होती है । यह एक अनुनादी (गुंजायमान) नृत्‍य है, जो साहितय की कुछ पंक्तियों के साथ संगीत के अक्षरों के साथ-साथ प्रस्‍तुत किया जाता है । विशिष्‍ट रूप से अभिकल्पित लयात्‍मक पंक्तियों के एक चरमोत्‍कर्ष पर पहुंचने के साथ खण्‍ड का समापन होता है । प्रस्‍तुतीकरण का अंत मंगलम्, भगवान से आशीर्वचन मांगने के साथ होता है ।

भरतनाट्यम् नृत्‍य के संगीत वाद्य मण्‍डल में एक गायक, एक बांसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है । जो व्‍यक्ति नृत्‍य का कविता-पाठ करता है, वह नट्टुवनार होता है ।