सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सीसीआरटी), कार्यरत् अध्यापकों हेतु विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है, जो देश के भिन्न-भिन्न भागों के अध्यापकों को अपनी संस्कृति के ज्ञान का आदान-प्रदान करने का सुअवसर प्रदान करता है, ताकि शिक्षा के विभिन्न आयामों में सह-सम्बन्ध और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को समेकित बना कर विद्यार्थियों के शैक्षिक अनुभवों को समृद्ध बनाया जा सके ।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में स्कूलों की भूमिका का अध्ययन करना तथा छात्रों एवं अध्यापकों को ऐसी गतिविधियां सुझाना जो देश सेवा में सहायक हों । कार्यशाला में कार्यान्वयन की ऐसी क्रियात्मक योजना विकसित की जाती है जो छात्रों को एक जिम्मेदार नागरिक बनने और भारत की प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत की सराहना व वातावरण की सुरक्षा करने हेतु प्रेरित करती है ।
हमारे देश में तीव्र गति से विकास के कारण भौतिक वातावरण तथा सांस्कृतिक ढॉचे में बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं । इसके परिणाम स्वरूप हम परिचित परिवेश और इससे संबंधित सांस्कृतिक पहचान खो रहे हैं । अत: आज इस वास्तविकता को जानना चाहिए कि हमने अज्ञानता, जागरूकता की कमी एवं अनियोजित योजनाओं से जो कुछ खोया, उसकी पुन: प्राप्ति असंभव है, चाहे यह किसी पौधे की प्रजाति या ऐतिहासिक स्मारक ही हो ।
कार्यशालाओं में अध्यापकों को इसलिए आमंत्रित किया जाता है, जिससे विद्यार्थी देश की समृद्ध प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक संसाधनों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका की अनुभूति कर सकें ।
• संरक्षण की ऐसी सरल तकनीकों का अध्ययन करना, जिनके द्वारा छात्रों/छात्राओं को उनके क्षेत्र में अवस्थित ऐतिहासिक स्मारकों तथा अन्य प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत की देखभाल में शामिल किया जा सके ।
• कार्यान्वयन हेतु ऐसी व्यावहारिक योजना विकसित करना, जिसके द्वारा छात्रों/छात्राओं को स्थानीय ऐतिहासिक स्थलों तथा उद्यानों को स्वच्छ, सुन्दर एवं आकर्षक बनाने हेतु उत्प्रेरित किया जा सके ।
• राष्ट्रीय अखण्डता की भावना विकसित करने के उद्देश्य से देश के विभिन्न भागों से आए हुए शिक्षक/शिक्षिकाओं को स्थानीय छात्रों/छात्राओं के साथ रहने/ठहरने तथा विचार करने का सुअवसर प्रदान करना ।