सांस्कृतिक पैकेज और पुस्तकें

सांस्‍कृतिक पैकेज

राष्‍ट्रीय प्रतीक

(8 पुस्तिकाऐं) सी.सी.आर.टी./सी.पी /1

स्‍वाधीन भारत के राष्‍ट्रीय प्रतीकों की संक्षिप्‍त ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि को इन पुस्तिकाओं (बुकलैट्स) में प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया गया है ।

  • राष्‍ट्रीय ध्‍वज – चक्रध्‍वज
  • राष्‍ट्रीय गान – जन-गण-मन
  • राष्‍ट्रीय गीत – वन्‍दे मातरम्
  • राष्‍ट्रीय पशु – बाघ
  • राष्‍ट्रीय पक्षी – मोर
  • राष्‍ट्रीय पुष्‍प – कमल
  • राष्‍ट्रीय कैलेण्‍डर – शक संवत्
  • राष्‍ट्रीय चिह्न – अशोक स्‍तंभ

मध्‍य प्रदेश के दुर्ग तथा महल

सी.सी.आर.टी./सी.पी/3

मध्‍य प्रदेश में विध्‍यांचल और सतपुडा पर्वतों की श्रृंखला है, जो अटल किलों के निर्माण के लिए आदर्श थी । जैसे ग्‍वालियर, असीरगढ़, कलींजर, मंडु आदि । इस पैकेज में 24 सचित्र कार्डों को वर्णन तथा एक लघु पुस्तिका सहित तैयार किया गया है, जो शिक्षकों व छात्रों को सामन्‍य जानकारी और रचनात्‍मक गतिविधियों से अवगत कराने में सहायक सिद्ध होगा ।

फतेहपुर सीकरी भाग-1 व 2

सी.सी.आर.टी./सी.पी/8

फतेहपुर सीकरी नगर का निर्माण महान मुगल शासक अकबर द्वारा 1556-1605 ईसवीं सन् के मध्‍य किया गया था । यह वास्‍तुकला, सुलेखन कलात्‍मक उत्‍कीर्णन और जाली कार्य का एक बेजोड़ नमूना है । परिसर की दीवारों पर समकालीन कलाकारों द्वारा बहुत नाजुक व सौन्‍दर्यपरक संवेदनशीलता सहित ज्‍यामितीय तथा फूलों के नमूने को बनाया गया है ।

फतेहपुर सीकरी पर दो पैकेज है जो भारतीय आर्किटेक्‍चरल डिजाइन भाग-। फतेहपुर सीकरी पर आधारित है जिसे पुरात्‍व सर्वेक्षण नार्थ वेस्‍ट प्रॉविन्‍सेस एण्‍ड औध (नैनीताल 1897) के श्री एडमंड डब्‍ल्‍यू सिम्‍थ के मार्ग दर्शन में तैयार किया गया है । चूंकि यह पोर्टफोलियो अब उपलब्‍ध नहीं है । अत: सीसीआरटी फोलियो के दो सैटों में कुछ ड्राइंग्‍स् प्रस्‍तुत कर रहा है । पहले सैट में तुर्की के सुल्‍तान के घर की, राजा बीरबल का घर और जोधाबाई के महल की ड्राइंग्‍स् हैं । दूसरे सैट में जामा मस्जिद, सलीम चिश्‍ती का मकबरा, बुलंद दरवाजा तथा इस्‍लाम खान के मकबरे की ड्राइंग्‍स् दी गई है ।

वस्‍त्र बुनाई भाग-1 और 2

सी.सी.आर.टी./सी.पी/20

भारत समृद्ध विभिन्‍न प्रकार के वस्‍त्रों की समृद्ध बुनाई के लिए प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्‍ठ माना जाता है । अधिकांश भारतीय वस्‍त्रों को सामान्‍य रूप से प्रयुक्‍त तन्‍तु के वर्गानुसार वर्गीकृत किया गया है जैसे सूती, ऊनी व रेशमी बुनाई में प्रयुक्‍त प्रक्रिया में विविध प्रकार के करघे, अंलकरण या सजावट के लिए प्रयुक्‍त पद्धति में छपाई, कशीदाकारी, चित्रकारी और रँगाई आदि ।

प्रत्‍येक सैट में 12 सचित्र कार्ड हैं । प्रथम सैट में बुनाई, नमूनों, रंगों और संरचना या तन्‍तु विन्‍यास पर प्रकाश डाला गया है, जो कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात तथा राजस्‍थान के हैं । दूसरे सैट में आन्‍ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, बंगाल उड़ीसा तथा अरूणाचल प्रदेश में की जाने वाली वस्‍त्रों की बुनाई, नमूनों, रंगो और संरचना पर प्रकाश डाला गया है ।

राजस्‍थान के दुर्ग, महल तथा हवेलियॉ

 सी.सी.आर.टी./सी.पी/4

भारत के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित राजस्‍थान, विशिष्‍ट राजपूत संस्‍कृति और परम्‍पराओं का स्रोत स्‍थल है । 7वीं से 9वीं ईसवी शताब्‍दी तक राजस्‍थान के इतिहास ने राजपूतों के उतार-चढा़व को देखा । इस सैट में 24 (चौबीस) सचित्र कार्ड है जिनमें राजस्‍थान के भव्‍य एवं शानदार दुर्ग एवं महल प्रदर्शित हैं । यह लघु पुस्तिका (बुकलैट) विद्यालय के छात्रों और शिक्षकों को सामान्‍य जानकारी और रचनात्‍मक गतिविधियों से अवगत कराती है ।

पुरूलिया छऊ

सी.सी.आर.टी./सी.पी/16

पुरूलिया छऊ नृत्‍य बंगाल, बिहार और उड़ीसा में बहुत ही लोकप्रिय है । पुरूलिया पश्चिमी बंगाल के एक जिले का नाम है । ‘छऊ’ एक जाति संबंधी शब्‍द है । छऊ नृत्‍यों की कई शैलियां है । इनमें पुरूलिया, सराईकेला तथा मयूरभंज सबसे लोकप्रिय हैं । इन नृत्‍य शैलियों में प्रमुख अन्‍तर इनकी प्रस्‍तुती में उपयोग में लाए जाने वाले मुखौटे का है । पुरूलिया छऊ को समतल मैंदान व खुले में पारम्‍परिक रूप से प्रस्‍तुत किया जाता है । नृत्‍य की शुरूआत गणेश वंदना से की जाती है । पुरूलिया छऊ के रंगपटल में अनेक नृत्‍य प्रस्‍तुतियां होती हैं जो महाभारत कालीन एवं कुछ पौराणों पर आधारित होती हैं । नृत्‍य प्रस्‍तुति के दौरान वाद्य यंत्रों की महत्‍वपूर्ण भमिका होती है ।

इस सांस्‍कृतिक पैकेज में 24 सचित्र कार्ड हैं, जिनमें विभिन्‍न प्रकार के मुखौटों, वेशभूषाओं, नृत्‍य गतिविधियों तथा संगीतात्‍मक वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया गया है । पुस्तिका (बुकलैट) छऊ नृत्‍य के प्रकारों, वे स्‍थान जहां छऊ नृत्‍य नोकप्रिय हैं, उनके उदभव, प्रकृति, समय, विषय वस्‍तु की जानकारी देती है और स्‍कूल के छात्रों तथा अध्‍यापकों हेतु रचनात्‍मक गतिविधियों से अवगत कराती है ।

पारम्‍परिक खिलौने

सी.सी.आर.टी./सी.पी/21

खिलौने, बच्‍चों की खास पसन्‍द होते हैं और उनमें बच्‍चों के लिए विशेष आकर्षण होता है । व्‍यक्तिगत रचनात्‍मक अभिव्‍यक्ति की आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है । शताब्दियों से पारम्‍परिक आकृतियों और खिलौने जैसी कलात्‍मक वस्‍तुएं अस्तित्‍व में रही हैं । सीसीआरटी ने पारम्‍परिक खिलौनों पर एक ऐसा सांस्‍कृतिक पैकेज तैयार किया है, जिसमें पशु, पक्षियों, मछलियों, मानव आकृतियों इत्‍यादि को प्रस्‍तुत किया गया है । यह पैकेज देश के सभी प्रदेशों में उपयोग में लाए जाने वाले और उपलब्‍ध विभिन्‍न खिलौनों में निहित सौन्‍दर्यपरक पारम्‍परिक तकनीकी प्रक्रियाओं को समझने के लिए उत्‍प्रेरित करता है ।

इस सैट में 24 सचित्र कार्ड दिए गए हैं जिनमें टैराकोटा, घास, लकड़ी, कपड़ा, धातु, शैल (सिप्‍पी) तथा शीशें के बने विविध प्रकार के खिलौनों को प्रदर्शित किया गया है । लघु पुस्तिका (बुकलैट) स्‍कूली छात्रों व शिक्षकों को पारम्‍प‍रिक खिलौनों और रचनात्‍मक गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है ।

वर्ल्‍ड कल्‍चरल हैरिटेज साईट्स-इंडिया-1, 2, 3, 4

सी.सी.आर.टी./सी.पी/6

वर्ष 1972 में यूनेस्‍कों की जनरल काउंसिल में ‘विश्‍व की प्राकृतिक एवं सांस्‍कृतिक धरोहर की सुरक्षा’ से सम्‍बंधित समझौता पारित किया । इसका उद्देश्‍य विश्‍व की प्राकृतिक एवं सांस्‍कृतिक धरोहर के संरक्षण हेतु विश्‍व के विभिन्‍न देशों एवं उनके निवासियों में परस्‍पर सहयोग को बढ़ावा देना था ताकि वे सब इस दिशा में अपना योगदान दे सकें । इस परिप्रेक्ष्‍य में यूनेस्‍को ने भारत के 16 स्‍थालों को विश्‍व सांस्‍कृतिक धरोहर के रूप में घोषित किया है । सांस्‍कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्‍द्र ने भारत में से चुने इन 16 सांस्‍कृतिक धरोहर के स्‍थलों पर चार पैकेज तैयार किए हैं ।

इनमें से प्रत्‍येक पैकेज में 24 रंगीन चित्र हैं । प्रत्‍येक के पीछे व्‍यापक जानकारी है साथ ही एक पुस्तिका भी है । पहले सैट में सांची, आगरा का किला, फतेहपुर सीकरी तथा ताज महल के बारे में जानकारी दी गई है । पुस्तिका में स्‍तूप, मस्जिद, मंदिर और चर्च की वास्‍तुकलात्‍मकता शब्‍दावली और योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई हैं ।

दूसरे सैट में सूर्य मंदिर काणार्क, खजुराहो, कुतुब परिसर तथा हुमायूँ का मकबरा के बारे में जानकारी दी गई है ।

तीसरे सैट में अजन्‍ता व एलोरा तथा ऐलीफेन्‍टा की गुफाओं और गोवा के चर्च तथा मठों के बारे में जानकारी दी गई है ।

चाथे सैट में महाबलीपुरम् स्‍मारकों, बृहदेश्‍वर मन्दिर, तंजोर के मंदिर, पट्टदकल के मंदिर तथा हम्‍पी के स्‍मारकों के बारे में जानकारी दी गई है । पुस्तिका में स्‍तूप, मस्जिद, मंदिर और चर्च की वास्‍तुकलात्‍मक शब्‍दावली और योजना के बारे में जानकारी दी गई है ।

पुतली कला भाग-1,2

सी.सी.आर.टी./सी.पी/18

इस पैकेज में सीसीआरटी द्वारा पारम्‍परिक पुतलियों पर सचित्र कार्डों का विवरण सहित प्रस्‍तुत किया गया है । भारत में ऐसी अनेक विविध पुतलिया तैयार की जाती हैं जो पौराणिक कथाओं और दंत कथाओं के विविध चरित्रों को प्रदर्शित करती हैं । उनमें से कुछ का चयन विभिन्‍न वर्गों का प्रतिनिधित्‍व करने की दृष्टि से किया गया है ।

प्रत्‍येक सैट में 24 सचित्र कार्ड है साथ ही पुस्तिका द्वारा विभिन्‍न प्रकार की पुतलियों को बनाने व चलाने की सामान्‍य तकनीकी कला से अवगत कराया गया है, जैसे छड़ पुतली, द्यागा पुतली, छाया पुतली तथा दस्‍ताना पुतली आदि ।

कुचीपुड़ी नृत्‍य

सी.सी.आर.टी./सी.पी /9

कुचीपुड़ी मूलत: आन्‍ध्र प्रदेश से है । यह भारत की एक पारम्‍परिक नृत्‍य शैली है । इसका उदभव यक्षगान के जातिगत नाम के अन्‍तर्गत पारम्‍परिक नृत्‍य-नाट्य से है । 17वीं शताब्‍दी ईसवी में एक प्रतिभाशाली वैष्‍णव कवि सिद्वेन्‍द्र योगी ने यक्षगान के रूप में कुचीपुड़ी शैली की कल्‍पना की । यह गणेश वंदना से आरम्‍भ होता है, उसके पश्‍चात् नृत्‍य (अवर्णनातमक और अर्थहीन नृत्‍य) शब्‍दम (वर्णनात्‍मक नृत्‍य) तथा नाटय की प्रस्‍तुती की जाती है । इस सांस्‍कृतिक पैकेज में विखयात कुचीपुड़ी नर्तक राजा और राधा रेड्डी द्वारा नृत्‍त, शब्‍दम और नाटय की विविध शैलियों को प्रस्‍तुत किया है

इस पैकेज में 24 सचित्र कार्ड हैं, जिनके पीछे नर्तक की मुद्रा, भाव, शैली, वेशभूषा तथा मुख-सज्‍जा से सम्‍बंधित संक्षिप्‍त विवरण दिया गया है । पुस्तिका में भारत में नाट्य शैलियों के उदभव, कुचीपुड़ी नृत्‍य की ऐतिहासिक पृष्‍ठ भूमि और स्‍कूली छात्रों तथा अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियां दी गई हैं ।

भरतनाट्यम् नृत्‍य

सी.सी.आर.टी./सी.पी /10

भरतनाट्यम् नृत्‍य 2000 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है । भरतमुनि के नाट्य शास्‍त्र में भरतनाटयम् को एकहार्य के रूप में वर्णन किया गया है, जिसमें नर्तकी अनेक भुमिकाएं करती हैं । विविध नृत्‍य शैलियों में भगवान शिव के नृत्‍य को भगवान नटराज के रूप में किया गया है ।

इस पैकेज में 24 सचित्र कार्डोंके पीछे भरतनाट्यम की विभिन्‍न नृत्‍य शैलियों जैसे अलारिप्‍पु, जातीस्‍वरम्, नृत्‍य, तिल्‍लाना आदि का वर्णन है । पुस्तिका में भारतीय नृत्‍यों भरतनाट्यम् के उदभव और उसके विकास की जानकारी तथा स्‍कूली छात्रों व शिक्षकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियों दी गई है ।

मणिपुरी नृत्‍य

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 11

मणिपुरी नृत्‍य, भारत के शास्‍त्रीय नृत्‍यों में से एक है । इसकी उत्‍पत्ति भारत के उत्‍तरी-पूर्वी राज्‍य मणिपुर में हुई । मणिपुर के लोग बाहरी प्रभाव से संरक्षित हैं तथा अपनी विशिष्ट पारम्‍परिक संस्‍कृति को बचाए रखने में समर्थ रहे । मणिपुरी नृत्‍य रीति-रिवाजों और पारंपरिक उत्‍सवों से जुड़ा है ।

इस सैट में 24 सचित्र कार्ड हैं । प्रत्‍येक के पीछे विविध नृत्‍य शैलियों, समृद्ध वेशभूषाओं और संगीत वाद्य यंत्रो का संक्षिप्‍त विवरण दिया गया है । पुस्तिका में भारतीय नृत्‍यों, उनके उदगम, मणिपुरी नृत्‍य की वर्तमान स्थिति तथा स्‍कूली छात्रों और अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियां दी गई हैं ।

कथकली नृत्‍य

सी.सी.आर.टी./सी.पी -12

कथकली, भारत के एक शास्‍त्रीय नृत्‍यों में से एक है । इसका उदभव केरल के विभिन्‍न सामाजिक और धार्मिक नाटय शैलियों से हुआ है । कथकली नृत्‍य, संगीत और अभिनय का मिश्रण है । इसमें अधिकतर भारतीय महाकाव्‍यों से ली गई कथाओं का नाटकीकरण किया गया है । कवि वल्‍लतोल ने शास्‍त्रीय कथकली नृत्‍य शैली की रचना की ।

इस पैकेज में 24 सचित्र कार्ड है, जिनके पीछे विभिन्‍न नृत्‍य मुद्राओं, मुख सज्‍जा पद्धतियों, वेशभूषा के नमूनों तथा संगीत वाद्य-यंत्रों को चित्रित करते हुए लिखित जानकारी भी दी गई है । पुस्तिका में भारतीय नृत्‍यों, उनके उद्भव और कथकली की वर्तमान स्थिति तथा स्‍कूली छात्रों और अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियां दी गई है ।

 

कथक नृत्‍य

सी.सी.आर.टी./सी.पी -13

कथक नृत्‍य का उदभव मूलत: उत्‍तर प्रदेश से हुआ है । इसमें संगीत, नृत्‍य और वर्णनात्‍मकता का संयोजन है । कथक नृत्‍य मुख्‍य रूप से मध्‍यकाल की रासलीला पर आधारित है, जो कि उत्‍तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र का स्‍थानीय नृत्‍य है । अत: हिन्‍दू और मुसलिम, दोनों दरबारों में कथक उच्‍च शैली में उभरा और मनोरंजन की एक परिष्‍कृत शैली के रूप में विकसित हुआ ।

इस पैकेज में 23 सचित्र कार्ड हैं, जिनमें लिखित जानकारी सहित नर्तकी की हस्‍त मुद्राओं, चेहरे की भाव-भंगिमाओं और संगीत वाद्य यंत्रों को निदर्शित किया गया है । पुस्तिका में भारतीय नृत्‍यों, उनके उदभव, कथक नृत्‍य की वर्तमान परिस्थिति तथा छात्रों और अध्‍यापकों हेतु रचनात्‍मक गतिविधियां दी गई हैं ।

उड़ीसी नृत्‍य

सीसीआरटी/सीपी-14

उड़ीसी नृत्‍य मूलत: उड़ीसा राज्‍य का है । यह देवताओं और मनुष्‍य मात्र को छू जाने वाला प्रेम और अनुराग का नृत्‍य है । नाट्य शास्‍त्र में उधरा मगधा शैली का उल्‍लेख किया गया है, जिसे वर्तमान उड़ीसी नृत्‍य की प्राचीनतम् शैली के रूप में पहचाना जा सकता है ।

इस पैकेज में 23 सचित्र कार्ड हैं । कार्ड के पीछे लिखित जानकारी सहित चेहरे के भावों, हस्‍त मुद्राओं, शरीर की गतियों, वेश-भूषा के नमूनो तथा संगीत वाद्य यंत्रों को निदर्शित किया गया है । पुस्तिका में उड़ीसी नृत्‍य, उसके उदभव और शैलियों के बारे में सामान्‍य जानकारी दी गई है, जो आज के समय में बहुत लोकप्रिय है । पुस्तिका में स्‍कूली छात्रों और अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियां भी दी गई हैं ।

ए‍क्‍सप्रेशंस इन लाइन्‍स

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 22

इस सांस्‍कृतिक पैकेज में सीसीआरटी द्वारा देश के विभिन्‍न भागों में लोकप्रिय रंगोलियों का एक लघु संग्रह प्रस्‍तुत किया गया है । अपनी शैली एवं विषय वस्‍तु की दृष्टि से रंगोलियां विविध प्रकार की हैं । सूर्य, चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी, फूल और पेड़ों का शैलीयुक्‍त निदर्शन करती रंगोलियॉ किसी भी गृहस्‍थी के लिए खुशहाली और सम्‍पन्‍न्‍ता का संदेश देती हैं । इस पैकेज में 23 रंगीन कार्ड दिये गये हैं, जिनके पीछे उनका विवरण भी दिया गया है । पुस्तिका में रंगोलियों के सम्‍बंध में सामान्‍य जानकारी तथा स्‍कूली छात्रों व अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियां हैं ।

म्‍यूजिकिल इस्‍टूमेण्‍ट्स ऑफ इंडिया 1 व 2

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 19

भारत विश्‍व में सबसे प्राचीन और विकसित संगीत प्रणालियों का उत्‍तराधिकारी है । संगीत सम्‍बंधी गतिविधियों के प्रमाण हमें मध्‍य प्रदेश में भीमबेटका के भित्ति चित्रों तथा हड़प्‍पा सभ्‍यता की खुदाई में मिलते हैं । संगीतात्‍मक वाद्य संगीत का मूर्त एवं सारवान प्रतिनिधित्‍व करने वाले होते हैं जो कि एक श्रव्‍य कला है ।

प्रथम सैट में तंतु संगीत वाद्यों पर 22 सचित्र कार्ड हैं । प्रत्‍येक कार्ड के पीछे विवरण दिया गया है । पुस्तिका में संगीत के विकास, विभिन्‍न प्रकार के तंतु वाद्यों की सामान्‍य जानकारी तथा स्‍कूली छात्रों व शिक्षकों के लिए गतिविधियां हैं । दूसरे सैट में फूंक से बजने वाले वायु वाद्यों, ताल वाद्यों तथा ठोस वाद्यों पर 24 सचित्र कार्ड हैं, प्रत्‍येक कार्ड के पीछे वर्णन किया गया है । पुस्तिका में संगीत के विकास तथा ध्‍वनि उत्‍पन्‍न करने में निहित सिद्धान्‍त, जिन पर वाद्यों का ढांचा व उपयुक्‍त सामग्री निर्भर है, की समान्‍य जानकारी दी गई है ।

दिल्‍ली की वास्‍तुकला

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 2

दिल्‍ली विश्‍व के महान नगरों में से एक है । यह अपनी एक परंपरा लिए है जिसका इतिहास महाकाव्‍य महाभारत के पौराणिक काल से जाना जाता है । सन् 1911 ई0 से दिल्‍ली भारत की राजधानी रही है । 12वीं शताब्‍दी से 19वीं शताब्‍दी ईसवी तक दिल्‍ली ने आठ नगरों का उत्‍थान-पतन देखा है । वे हैं- किला राय पिथौरा, सिरी, तुगलकाबाद, जहॉपनहाबाद, फिरोजाबाद, दीन पनाह, शाहजहॉनाबाद और नई दिल्‍ली । विभिन्‍न ऐतिहासिक एवं सांस्‍कृतिक अभियान उस समय के शासकों के कला और वास्‍तुकला तथा शिल्‍पकला में झुकाव के प्रमाण है ।

इस पैकेज में 22 सचित्र कार्ड वर्णन सहित हैं एवं एक पुस्तिका हैं । इनमें हम मुगल सल्‍तनत और ब्रिटिश वास्‍तुकला शैली को देख सकते हैं । पुस्तिका में दिल्‍ली की वास्‍तुकला, उसके संरक्षकों और ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि की जानकारी तथा स्‍कूली छात्रों और अध्‍यापकों के लिए रचनात्‍मक गतिविधियॉ हैं ।

सांस्‍कृतिक इतिहास भाग 1, 2 व 3

सी.सी.आर.टी./सी.पी -6

सदियों से लोगों की कलात्‍मक अभिव्‍यक्ति ऐतिहासिक जानकारी का एक मूल्‍यांकन स्रोत है । चित्रकला और शिल्‍पकला से हमें प्राचीनकाल के लोगों के दैनंदिन जीवन के बारे में जानकारी मिलती है । भारत में विद्वानों, कलाकारों तथा शिक्षाविदों ने इस बात पर बहुत बल दिया है कि भारत की समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत को समझने तथा उसके प्रति स्‍नेह प्रसारित करने के लिए स्‍कूलों में सांस्‍कृतिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए ।

सांस्‍कृतिक इतिहास भाग-1 में 24 सचित्र कार्ड और एक पुस्तिका है । प्रत्‍येक कार्ड के पीछे प्राचीन भारत की मुहरें मूर्तिकला, स्‍तूप, मंदिर वास्‍तुकला के बारे में वर्णन है । पुस्तिका में 8000 ई0पू0 से 8वीं शताब्‍दी ईसवी तक की समकालीन वास्तुकला, मुर्तिकला और चित्रकला की प्रमुख विशेषताओं के बारे में सामान्‍य जानकारी दी गई है ।

सांस्‍कृतिक इतिहास भाग-2 में 24 रंगीन चित्र कार्ड और एक पुस्तिका है । चित्र कार्डों में महाबलीपुरम् रथों, कांचीपुरम के मंदिरों, बादामी, पट्टदकल के मंदिरों, खजुराहो, कोणार्क के मंदिरों और अन्‍य मंदिरों पर भी प्रकाश डाला गया है । पुस्तिका में 7वीं से 16वीं शताब्‍दी ईसवी के दौरान प्रचलन में रही वास्‍तुकला, मूर्तिकला, और चित्रकला की विशेषताओं पर वर्णन है । सांस्‍कृतिक इतिहास भाग-3 में 24 सचित्र कार्ड तथा एक पुस्तिका है । चित्र कार्डों के पीछे सल्‍तनत और मुगल वास्‍तुकला के बारे में वर्णन है । पुस्तिका में 7वीं से 16वीं शताब्‍दी ईसवी के दौरान प्रचलन में रही मूर्तिकला और चित्रकला पर प्रकाश डाला गया है ।

महाराष्‍ट्र के दुर्ग

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 5

महाराष्‍ट्र दुर्गों की भूमि है । महाराष्‍ट्र के 350 अनूठे दुर्ग मराठों के इतिहास और सफलता की गवाही देते हैं । मराठा सत्‍ता की नींव, विस्‍तार और उसे कायम रखने में इन दुर्गों की महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है । इन्‍हें तीन श्रेणियों में बाँटा गया है । स्‍थलदुर्ग (मैदानी दुर्ग) ग्रिड दुर्ग (पहाड़ी दुर्ग) जय दुर्ग (समुद्री दुर्ग) इस पैकेज में 24 रंगीन सचित्र चित्र कार्ड हैं एवं एक पुस्तिका है । पुस्तिका में महाराष्‍ट्र के दुर्गों की ऐतिहासिक एवं सांस्‍कृतिक पृष्‍ठभूमि तथा महाराष्‍ट्र के दुर्गों की वास्‍तुकला की प्रमुख विशेषताओं के बारे में सामान्‍य जानकारी दी गई है ।

विश्‍व प्राकृतिक सम्‍पदा स्‍थल-भारत-1 व 2

सी.सी.आर.टी./सी.पी – 7

1972 में यूनेस्‍कों की जनरल काउंसिंल ने ‘विश्‍व की प्राकृतिक एवं सांस्‍कृतिक धरोहर के संरक्षण’ से सम्‍बंधित समझौता पारित किया । इसका उद्देश्‍य विश्‍व की प्राकृतिक एवं सांस्‍कृतिक द्यरोहर के संरक्षण हेतु विश्‍व के विभिन्‍न देशों एवं उनके निवासियों में परस्‍पर सहयोग की भावना को बढ़ावा देना है, ताकि वे मानव जाति से जुड़ी विश्‍व की प्राकृतिक एवं सांस्‍कृतिक धरोहर के संरक्षण के उद्देश्‍यों को पूरा करने में अपना योगदाना दे सकें । इस सन्‍दर्भ में विश्‍व धरोहर समिति ने आई.यू.सी.एन. अर्थात् (इंटरनेश्‍नल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एण्‍ड नेचुरल रिर्सोसिस) की सहायता से भारत में पाँच स्‍थलों को प्राकृतिक द्यरोहर स्‍थलों के रूप में घोषित किया है ।

प्रत्‍येक सैट में 24 चित्र कार्ड हैं, जिनमें भारत में सबसे अधिक दुर्लभ होती जा रही स्‍तनधारी जीवों और पक्षियों की प्रजातियों का सचित्र वर्णन किया गया है जैसे हाथी, गैंडा, तेंदुआ, जंगली भैंस, फिन्‍स बया, फिशिंग कैट, स्‍मूथ ओट्टर, बाघ, चीतल, मोनल फियसन्‍ट इत्‍यादि । पुस्तिका के प्रथम सैट में दो स्‍थलों-मानस और काजीरंगा राष्‍ट्रीय उद्यान के बारे में तथा दूसरे सैट में तीन स्‍थलों सुन्‍दरबन, नंदादेवी और केवलादेव राष्‍ट्रीय उदयान् के बारे में जानकारी दी गई है जहां पर ये प्रजातियां रहती हैं ।

सत्रिया नृत्या

सी.सी.आर.टी./सी.पी -15

15 वीं शताब्दी में ई.पू. सत्त्रिया नृत्य की शुरुआत वैष्णव विश्वास के प्रचार के लिए एक महान माध्यम वैष्णव संत और असम के सुधारक श्रीमंत शंकरदेव द्वारा की गई थी। उन्होंने दर्शकों को भक्ति रस, परम भक्ति के लिए निस्वार्थ भाव से जागरूक किया और उन्हें एक ऐसे समय में सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की कला से परिचित कराया, जब समाज धार्मिक दुर्भावनाओं और गूढ़ तांत्रिकता से ग्रस्त था।

इस सांस्कृतिक पैकेज में, सीसीआरटी ने सत्त्रिया नृत्य के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया है जैसे कि हास्टल मुद्राएं, कोरियोग्राफिक पैटर्न, फुटवर्क, विशिष्ट अंगिया, संगीत वाद्ययंत्र और विभिन्न प्रकार के हेडगियर और गहने।

रिपोर्टें तथा पुस्‍तकें

संस्‍कृति तथा विकास पर राष्‍ट्रीय सेमिनार

सीसीआरटी/आरबी -XLIII

इस पुस्‍तक में संस्‍कृति तथा विकास पर राष्‍ट्रीय सेमिनार के दौरान प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा प्रस्‍तुत पेपर्स हैं ताकि क्रियान्‍वयन की योजना तैयार हो और विकास के सभी क्षेत्रों में नीतियों को योजित करने में सौन्‍दर्यपरक और सांस्‍कृतिक मूल्‍यों के एकीकरण हेतु मानदण्‍डों को विकसित किया जा सके जो एशिया प्रशांत क्षेत्र के सदस्‍य देशों को प्रेरित करें । विकासात्‍मक कार्यक्रमों को सुदृढ़ करने में संस्‍कृति की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है । सभी स्‍तरों पर प्रशासकों के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक है कि सांस्‍कृतिक और सौन्‍दर्यपरक मूल्‍यों,  धार्मिक मान्‍यताओं और भारतीय जन साधारण के सामाजिक रीति-रिवाजों के विकास के ‘मॉडलों’ को लागू करने से पूर्व पहचाने । इस पुस्‍तक में कला तथा संस्‍कृति, कानून, पर्यटन, माध्‍यम, शिक्षा आदि विषयों से सम्‍बंधित पेपर्स प्रस्‍तुत हैं ।

तीर्थराज प्रयाग

सीसीआरटी/आरबी -24

इस पुस्‍तक में लेखक ने तीर्थराज प्रयाग की महत्‍वपूर्ण विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । प्रयाग अति प्राचीन सांस्‍कृतिक एवं धार्मिक केन्‍द्र है । प्रयाग सक्रिय मानवीय संवेदनाओं का खजाना है । इस नगर को हम आध्‍यात्मिक और नैतिक शिक्षा के केन्‍द्र के रूप में भी देख सकतें है । इस पुस्‍तक में प्रयाग के बारे में वेदों, पुराणों, श्रुतियों, स्‍मृतियों, महाभारत, रामायण और रामचरित्र मानस में प्राप्‍त संदर्भ और विवरण, अध्‍यात्मिक और सांस्‍कृतिक परम्‍परा का चित्र प्रस्‍तुत करते हैं ।

कुंभ नगरी प्रयाग

सीसीआरटी/आरबी -XLV

कुंभ मानवता, हृदय और मन की खोज हेतु अत्‍यन्‍त कठिन प्रयास का प्रतीक है । जो जीवन को समृद्ध करने के अन्‍वेषण या खोज का ही तत्‍व है ।  प्रयाग नगरी का अस्तित्‍व पूर्व वैदिक काल से माना जाता है, यह केवल एक प्राचीन नगरी ही नहीं है बल्कि एक अत्‍यन्‍त ऐतिहासिक स्‍तर पर महत्वपूर्ण नगर भी है । समय-समय पर हुई पुरातात्विक खोज भी इसका प्रमाण देती है । इस पुस्‍तक में इलाहाबाद और उसके आस-पास के महत्‍वपूर्ण स्‍थानों की झलक है । इसमें कुंभ की उत्‍पत्ति, उसके ज्‍योतिषीय प्रभाव, महत्‍ता और सतत् विश्‍वास के केन्‍द्र स्‍वरूप मंदिरों तथा इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय सहित आधुनिक विज्ञान और प्रोद्योगिकी संस्‍थानों के बारे में भी जानकारी प्रस्‍तुत की गई है ।

चंबा

भारत राष्ट्रीयता के साथ स्थानीय संस्कृतियों से संपन्न देश है। विभिन्न क्षेत्रों, नगरों की विशेषताएँ इस देश को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। ये मात्रा भौगोलिकता तक सीमित नहीं। इनमें रुचियों के विभिन्न पहलू देखे जा सकते हैं, जैसे वहाँ की वास्तुकला, धर्म, लोकगीत, वेशभूषा, भाषा, प्रकृति, पर्यावरण आदि। कई बार ये आपस में जुड़ते हैं तो कई बार सीमाओं का अतिक्रमण भी करते हैं। स्थानीयता के बावजूद उनमें ऐसे तत्त्व होते हैं जो भारतीयता के सहज आधार बनते हैं। यदि गाँव सांस्कृतिक एकरूपता के प्रतीक हैं तो शहर सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक। ये एक तरह से हमारी ऐतिहासिक/सांस्कृतिक धरोहर हैं।

इन विशिष्ट लघु नगरों/नगरों पर आधारित पुस्तक-शृंखला में ‘चंबा’ पुस्तक सिर्फ़ शहर की गाथा न होकर संस्कृति, जिजीविषा, नवाचार, परंपरा, जिज्ञासा, समझ व नए समय को दर्शाती जीवन-दृष्टि की वाहक के रूप में पाठकों के बीच आदर का विषय बनेगी। 

कर्नाटक के किले

कर्नाटक में किले निर्माण का लंबा इतिहास रहा है। भारत के किसी अन्य क्षेत्र में दक्कन का क्षेत्र नहीं है, जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं। कहा जाता है कि तीसरी और चौथी शताब्दी में ई.पू. सातवाहन ने कर्नाटक में सबसे पुराने किलों का निर्माण किया था। किले की दीवारों के अवशेष सन्नती में मिले हैं।

कालपी

भारत राष्ट्रीयता के साथ स्थानीय संस्कृतियों से संपन्न देश है। विभिन्न क्षेत्रों, नगरों की विशेषताएँ इस देश को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। ये मात्रा भौगोलिकता तक सीमित नहीं। इनमें रुचियों के विभिन्न पहलू देखे जा सकते हैं, जैसे वहाँ की वास्तुकला, धर्म, लोकगीत, वेशभूषा, भाषा, प्रकृति, पर्यावरण आदि। कई बार ये आपस में जुड़ते हैं तो कई बार सीमाओं का अतिक्रमण भी करते हैं। स्थानीयता के बावजूद उनमें ऐसे तत्त्व होते हैं जो भारतीयता के सहज आधार बनते हैं। यदि गाँव सांस्कृतिक एकरूपता के प्रतीक हैं तो शहर सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक। ये एक तरह से हमारी ऐतिहासिक/सांस्कृतिक धरोहर हैं।

इन विशिष्ट लघु नगरों/नगरों पर आधारित पुस्तक-शृंखला में ‘कालपी’ पुस्तक सिर्फ़ शहर की गाथा न होकर संस्कृति, जिजीविषा, नवाचार, परंपरा, जिज्ञासा, समझ व नए समय को दर्शाती जीवन-दृष्टि की वाहक के रूप में पाठकों के बीच आदर का विषय बनेगी।

Dewas

भारत राष्ट्रीयता के साथ स्थानीय संस्कृतियों से संपन्न देश है। विभिन्न क्षेत्रों, नगरों की विशेषताएँ इस देश को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। ये मात्रा भौगोलिकता तक सीमित नहीं। इनमें रुचियों के विभिन्न पहलू देखे जा सकते हैं, जैसे वहाँ की वास्तुकला, धर्म, लोकगीत, वेशभूषा, भाषा, प्रकृति, पर्यावरण आदि। कई बार ये आपस में जुड़ते हैं तो कई बार सीमाओं का अतिक्रमण भी करते हैं। स्थानीयता के बावजूद उनमें ऐसे तत्त्व होते हैं जो भारतीयता के सहज आधार बनते हैं। यदि गाँव सांस्कृतिक एकरूपता के प्रतीक हैं तो शहर सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक। ये एक तरह से हमारी ऐतिहासिक/सांस्कृतिक धरोहर हैं।

इन विशिष्ट लघु नगरों/नगरों पर आधारित पुस्तक-शृंखला में ‘देवास की सांस्कृतिक परम्परा’ पुस्तक सिर्फ़ शहर की गाथा न होकर संस्कृति, जिजीविषा, नवाचार, परंपरा, जिज्ञासा, समझ व नए समय को दर्शाती जीवन-दृष्टि की वाहक के रूप में पाठकों के बीच आदर का विषय बनेगी। 

हमारा सहारनपुर

भारत राष्ट्रीयता के साथ स्थानीय संस्कृतियों से संपन्न देश है। विभिन्न क्षेत्रों, नगरों की विशेषताएँ इस देश को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। ये मात्रा भौगोलिकता तक सीमित नहीं। इनमें रुचियों के विभिन्न पहलू देखे जा सकते हैं, जैसे वहाँ की वास्तुकला, धर्म, लोकगीत, वेशभूषा, भाषा, प्रकृति, पर्यावरण आदि। कई बार ये आपस में जुड़ते हैं तो कई बार सीमाओं का अतिक्रमण भी करते हैं। स्थानीयता के बावजूद उनमें ऐसे तत्त्व होते हैं जो भारतीयता के सहज आधार बनते हैं। यदि गाँव सांस्कृतिक एकरूपता के प्रतीक हैं तो शहर सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक। ये एक तरह से हमारी ऐतिहासिक/सांस्कृतिक धरोहर हैं।

इन विशिष्ट लघु नगरों/नगरों पर आधारित पुस्तक-शृंखला में ‘हमारा सहारनपुर’ पुस्तक सिर्फ़ शहर की गाथा न होकर संस्कृति, जिजीविषा, नवाचार, परंपरा, जिज्ञासा, समझ व नए समय को दर्शाती जीवन-दृष्टि की वाहक के रूप में पाठकों के बीच आदर का विषय बनेगी। 

 

Beed

”हैदराबादचा स्‍वातंत्रयसंग्राम आणि बीड जिल्‍हा” पुस्‍तक इतिहास, राजनीति, संस्‍कृति, समाज , प्रशासन आदि को दर्शाने वाली ऐसी महागाथा है, जिसमें हैदराबाद के स्‍वतंत्रता संग्राम का गहन विवेचन उपलब्‍ध है । पुस्‍तक कथ्‍य में धर्म, भाषा तथा जीवनप्रणाली व मूल्‍यों की तहों में जाकर पक्षहीन भाव से विश्‍लेषण किया गया है । इसमें एक – सूत्रता मिलती है । उत्‍तेजित करने वाले प्रसंगों तथा अतिरंजना से हटकर वस्‍तुनिष्‍ठता के माध्‍यम से तथ्‍य लाए गए हैं । हैदराबाद मुक्तिसंग्राम को प्रस्‍तुत करते हुए उपेक्षित जनों, जिनको इतिहास में केंद्रीय महत्‍व नहीं मिल सका था, उनको उचित व सकारात्‍मक सम्‍मान दिया गया है । सबाल्‍टर्न थीअरी व हाशिए पर पड़े जनों को विश्‍लेषण की मुख्‍यधारा का बिंदु बनाया गया है ।

आरानामा

भारत राष्ट्रीयता के साथ स्थानीय संस्कृतियों से संपन्न देश है। विभिन्न क्षेत्रों, नगरों की विशेषताएँ इस देश को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। ये मात्रा भौगोलिकता तक सीमित नहीं। इनमें रुचियों के विभिन्न पहलू देखे जा सकते हैं, जैसे वहाँ की वास्तुकला, धर्म, लोकगीत, वेशभूषा, भाषा, प्रकृति, पर्यावरण आदि। कई बार ये आपस में जुड़ते हैं तो कई बार सीमाओं का अतिक्रमण भी करते हैं। स्थानीयता के बावजूद उनमें ऐसे तत्त्व होते हैं जो भारतीयता के सहज आधार बनते हैं। यदि गाँव सांस्कृतिक एकरूपता के प्रतीक हैं तो शहर सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक। ये एक तरह से हमारी ऐतिहासिक/सांस्कृतिक धरोहर हैं।

इन विशिष्ट लघु नगरों/नगरों पर आधारित पुस्तक-शृंखला में ‘आरानामा’ पुस्तक सिर्फ़ शहर की गाथा न होकर संस्कृति, जिजीविषा, नवाचार, परंपरा, जिज्ञासा, समझ व नए समय को दर्शाती जीवन-दृष्टि की वाहक के रूप में पाठकों के बीच आदर का विषय बनेगी। 

लिविंग ट्रेडिशंस ट्राइबल एंड फोक पेंटिंग्स ऑफ इंडिया

जीवित परंपराएं देश की सांस्कृतिक पहचान के लिए एक आवश्यक और एक दृश्यमान निर्धारक हैं। एक भारतीय को छोटी उम्र से कई पारंपरिक कला रूपों, आंकड़ों और अनुष्ठानों के चित्रण में भागीदारी और अवलोकन दोनों द्वारा वातानुकूलित किया जाता है। CCRT भारतीय कला और संस्कृति के बारे में ज्ञान को बढ़ावा देने और प्रसार करने में सबसे आगे है। युवा लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी संस्कृति को दूसरों की तरह समझें। वर्तमान पुस्तक का उद्देश्य भारत के आदिवासी और लोक चित्रों की समृद्ध जीवित परंपराओं के बारे में जागरूकता और प्रशंसा पैदा करना है। भारत में असंख्य प्रसिद्ध परंपराओं में से कुछ को कवर किया गया है। कुछ का नाम लेने के लिए, महाराष्ट्र की चित्रकूट, राजस्थान की चरण परंपरा, बंगाल और बिहार की जादुपटुआ परंपरा कथाकार की स्क्रॉल से स्पष्ट है। राजस्थान की नाथद्वारा पेंटिंग, ओडिशा के पाटचत्र, पश्चिम बंगाल के कालीघाट और गुजरात के माता-पचिदी एक केंद्रीय देवता और आस्था से जुड़े हैं। ये पेंटिंग सौंदर्य, आध्यात्मिक, पारिस्थितिक, सामाजिक और साथ ही मनोरंजक मूल्य के साथ अंतर्निहित हैं। प्रत्येक पेंटिंग शैली अपने आप को एक समान प्रारूप में ढालती है। प्रयास किए गए हैं कि प्रत्येक शैली के लिए इसकी मूल, आवश्यक पृष्ठभूमि की जानकारी, थीम, विधियों और सामग्री को कवर किया जाए।

सांस्कृतिक पैकेज

S.No. TitlePrice
CCRT/CP/1राष्‍ट्रीय प्रतीक250
CCRT/CP/2मध्‍य प्रदेश के दुर्ग तथा महल200
CCRT/CP/3फतेहपुर सीकरी भाग-1 व 2400
CCRT/CP/4वस्‍त्र बुनाई भाग-1 और 2200
CCRT/CP/5कपड़ा डिजाइन, 1 और 2400
CCRT/CP/6किले, महलों और amp; राजस्थान की हवेलियाँ200
CCRT/CP/7पुरुलिया छऊ200
CCRT/CP/8पारंपरिक खिलौने200
CCRT/CP/9विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल भारत, 1, 2, 3, और 4800
CCRT/CP/10कठपुतली की कला, 1 और 2400
CCRT/CP/11कुचिपुड़ी नृत्य200
CCRT/CP/12भरतनाट्यम नृत्य200
CCRT/CP/13मणिपुरी नृत्य200
CCRT/CP/14कथकली नृत्य200
CCRT/CP/15कथक नृत्य200
CCRT/CP/16ओडिसी नृत्य200
CCRT/CP/17एक्सप्रेशंस इन लाइन्स200
CCRT/CP/18भारत के संगीत वाद्ययंत्र, 1 और 2400
CCRT/CP/19दिल्ली की वास्तुकला200
CCRT/CP/20सांस्कृतिक इतिहास, 1, 2 और 3600
CCRT/CP/21महाराष्ट्र के किले200
CCRT/CP/22भारत के पारंपरिक थिएटर फॉर्म 1 और 2400
CCRT/CP/23सत्त्रिया नृत्य200
REPORTS AND BOOKS
CCRT/RB/24Culture and Development300
CCRT/RB/25तीरथ राज प्रयाग200
CCRT/RB/26कुंभ सिटी प्रयाग250
CCRT/RB/27लिविंग ट्रेडिशन: ट्राइबल एंड फोक पेंटिंग ऑफ इंडिया960
CCRT/RB/28हैदराबाद और बीड जिले की स्वतंत्रता संग्राम 350
CCRT/RB/29चम्बा (हिंदी)200
CCRT/RB/30कालपी (हिंदी)225
CCRT/RB/31हमरा सहारनपुर (हिन्दी)200
CCRT/RB/32देवास की संस्कृत परम्परा180
CCRT/RB/33Aaranama200

उपरोक्त सामग्री बिक्री के लिए उपलब्ध है, सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र (CCRT), नई दिल्ली, उदयपुर, हैदराबाद और गुवाहाटी में उपलब्धता के अधीन है।

डाक द्वारा सामग्री भेजने के लिए डाक और हैंडलिंग शुल्क वास्तविक के अनुसार अतिरिक्त होंगे

ऑर्डर की गई सामग्री का भुगतान या तो नकद या डिमांड ड्राफ्ट के पक्ष में किया जा सकता है "निदेशक, सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र, नई दिल्ली"

बिक्री पूछताछ के लिए संपर्क करें

सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र,

15-ए, सेक्टर - 7, द्वारका,

नई दिल्ली - 110075

टेलीफोन: (011) 25309300 एक्स्टेंन। 340

ई-मेल: -prod.ccrt@nic.in