सीसीआरटी/डीवीडी -1 | अवधि – 45 मिनट
ओडिसी एक शास्त्रीय नृत्य शैली है जो ओडिशा में उदभूत हुई । अन्य अधिकांश भारतीय नृत्यों की भांति ओडिसी भी धार्मिक मान्यताओं/विश्वासों से प्रभावित रही है । ओडिसी नृत्त शैली, नृत्य के विभाजन का अनुसरण करती है और शरीर की अर्थहीन गतियों के सौन्दर्यपरक प्रबंधन से सम्बंध रखती है तथा नृत्य में मुखपरक अभिव्यक्तियों, हस्त मुद्राओं और शारीरिक गतियों को सम्मिलित करती है ताकि एक विशेष भाव को अभिव्यक्त किया जा सके । ओडिसी नृत्य पर इस फिल्म में नृत्त और नृत्य के पहलुओं को चित्रित (प्रदर्शित) किया गया है । जानी-मानी ओडिसी नृत्यांगना माधवी मुदगल द्वारा मंगलाचरण, बटु, पल्लवी, अभिनय और मोक्ष का वर्णन व प्रदर्शन किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -2 | अवधि – 23 मिनट
ओडिसी एक शास्त्रीय नृत्य शैली है जो ओडिशा में उदभूत हुई । अन्य अधिकांश भारतीय नृत्यों की भांति ओडिसी भी धार्मिक मान्यताओं/विश्वासों से प्रभावित रही है । ओडिसी नृत्त शैली, नृत्य के विभाजन का अनुसरण करती है और शरीर की अर्थहीन गतियों के सौन्दर्यपरक प्रबंधन से सम्बंध रखती है तथा नृत्य में मुखपरक अभिव्यक्तियों, हस्त मुद्राओं और शारीरिक गतियों को सम्मिलित करती है ताकि एक विशेष भाव को अभिव्यक्त किया जा सके । ओडिसी नृत्य पर इस फिल्म में नृत्त और नृत्य के पहलुओं को चित्रित (प्रदर्शित) किया गया है । जानी-मानी ओडिसी नृत्यांगना माधवी मुदगल द्वारा मंगलाचरण, बटु, पल्लवी, अभिनय और मोक्ष का वर्णन व प्रदर्शन किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -3 | अवधि – 55 मिनट
भरतनाट्यम शैली की उत्पत्ति दक्षिण भारत विशेष रूप से तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से हुई । इसका प्रदर्शन न केवल भारत के सभी भागों में किया जाता है बल्कि इस शैली ने विदेश में भी अपनी लोकप्रियता प्राप्त की है । इस प्राचीन कला शैली में भारतीय नृत्य के सभी पहलू – नृत्त, नृत्य और नाट्य हैं । भरतनाट्यम नृत्य शैली में रामायण के बालकाण्ड प्रंसग पर एक वीडियो फिल्म तैयार की गई है । विख्यात नर्तकी सुधा रानी रघुपति के मार्गदर्शन में इसे प्रस्तुत किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी – 4 | अवधि – 45 मिनट
भरतनाट्यम शैली की उत्पत्ति दक्षिण भारत विशेष रूप से तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से हुई । इसका प्रदर्शन न केवल भारत के सभी भागों में किया जाता है बल्कि इस शैली ने विदेश में भी अपनी लोकप्रियता प्राप्त की है । इस प्राचीन कला शैली में भारतीय नृत्य के सभी पहलू – नृत्त, नृत्य और नाट्य हैं । भरतनाट्यम नृत्य शैली में रामायण के बालकाण्ड प्रंसग पर एक वीडियो फिल्म तैयार की गई है । विख्यात नर्तकी सुधा रानी रघुपति के मार्गदर्शन में इसे प्रस्तुत किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी – 5 | अवधि-30 मिनट
सिक्किम में विविध समुदाय के लोग रहते हैं, प्रत्येक समुदाय अपने क्षेत्र की निष्पादन कलाओं में अपना योगदान दे रहा है । सबसे पहले ‘लेपचा’ जाति के लोग आकर सिक्किम में बसे । उसके पश्चात् ‘भूटिया’ आए जो तिब्बत और भूटान से आए, जो प्राचीन बसने वाले लोगों के वंशज हैं और अंत में नेपाली आए जो नेपाल से आकर सिक्किम में बस गए । इनमें से प्रत्येक का सामाजिक अथवा धार्मिक उत्सव लोक गीतों तथा नृत्यों के लिए रंगपटल भिन्न है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -6 | अवधि-25 मिनट
जैसलमेर भाटिओं की राजधानी है, जो देश के मध्य क्षेत्र में स्थित है । प्राचीन भूगोल के अनुसार मरूस्थली अर्थात् भारत के मरूस्थल के नाम से भी जाना जाता है । इस वीडियो फिल्म में जैसलमेर नगर का वैभव तथा महत्वपूर्ण इमारतें और स्मारक जैसे जैसलमेर का किला, हवेलियॉ तथा जैन मन्दिर आदि शामिल हैं।
सीसीआरटी/डीवीडी -7 | अवधि-30 मिनट
भारत में शिक्षा की संकल्पना और पद्धति में आमूलचूल परिर्वतन आ चुका है । हमारी शिक्षा पद्वति पूर्णत: पाश्चात्य हो गई है । गुरूकुल की संकल्पना में जानकारी के आंकडों का संग्रह नहीं है, पर सत्य हेतु खोज है ताकि परिचित अथवा प्राप्त ज्ञान को श्रेष्ठ अथवा ज्ञानातीत बनाया जा सके । आश्चर्य की बात है कि गुरूकुल की प्राचीन पद्धति को अपनाने वाले कला और संगीत के कलाकार आज भी परम्परा कायम रखे हुए हैं । गुरु केवल ज्ञान की महान प्रभावशाली शक्ति नहीं बल्कि ज्ञात से अज्ञात की असीमित खोज करने के मार्ग में विनम्र मार्ग-दर्शक भी हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी – 8 | अवधि-23 मिनट
रास भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है, जिसे लय लालित्य और गतियों के काव्यात्मक सौन्दर्य के लिए जाना जाता है । ‘रास’ मणिपुर की एक जीवंत परम्परा है । लीला के अंत में, कृष्ण गोपियों से अपने-अपने घरों को लौटने के लिए कहते हैं क्योंकि शीघ्र ही भोर होने वाली है और तब वे उत्तर देती हैं ‘हम अगले जन्म में भी सदा गोपियों के रूप में ही जन्म लें’ । यह वाक्य रास की सत्य भावुकता है । यह भावुकता, प्रत्येक दर्शक के हृदय में परिलाक्षित होती है, प्रत्येक उस दिव्य आत्मा के साथ एकाकार होना चाहता है । मनोभावना ‘श्रृंगारभक्ति’ अथवा सर्वशक्तिमान के प्रति प्रेम में टिकी है । इसमें हम एक सरल मानवीय दृष्टिकोण देखते हैं जिसमें इच्छाएं, आकांक्षाए तथा भावनाएं ईश्वर-प्रेम का ही एक भाग बन जाती हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी -9 | अवधि-23 मिनट
सातवीं शताब्दी ईसवीं में उत्तरी भारत पर कन्नौज के हर्षवर्धन के शासन से पहले सुदूर दक्षिणी में पल्लवों का शासन था । उनके साम्राज्य की राजधानी कांचीपुरम थी तथा महाबलीपुरम् समुद्री बंदरगाह था । महाबलीपुरम् शहर बंगाल की खाड़ी के समानान्तर है । यह क्षेत्र प्राचीन काल से प्रसिद्ध बंदरगाह है और इस तथ्य की पुष्टि पहली शताब्दी के एक अनाम यूनानी नाविक द्वारा कई गई । इसे पल्लवों के महान शासक मामल्ल के नाम पर भी महाबलीपुरम कहा जाता था ।
दक्षिण भारत पाषाण-वास्तुकला की कथा महाबलीपुरम् से आरम्भ होती है । यहां की वास्तुकला की तीन प्रमुख शैलियों का सम्बंध मामल्य, उनके बेटे नरसिंह वर्मन और राजसिंह के शासन काल से है । महाबलीपुरम् की शैली सबसे प्राचीन और सरल है जो चट्टान को काटकर बनाये गये मंदिरों में पायी जाती है । नरसिंहवर्मन के गुफा मंदिरों अथवा मामल्ल शैली में स्तंभ, सलोने तथा अलंकृत हैं और ये उकडूं बैठे सिंहों से आधारित हैं । राजसिंह काल में ग्रेनाइट पत्थर के शिला-खंडों से मंदिरों का निर्माण किया गया था । महाबलीपुरम् की प्रत्येक गुफा स्वयं में विशिष्ट है । शिल्पात्मक उभार, पंच पांडव रथ, तटीय मंदिर आदि पल्लवकालीन शासन की कलात्मक उपलब्धियों के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी -10 | अवधि – 26:39 मिनट
छऊ नृत्य बंगाल बिहार तथा ओडिशा में बहुत ही मशहूर है । छऊ नृत्य की कई शैलियां होती हैं । इन नृत्यों में पुरुलिया सराइकेला तथा मयूरभंज अत्यधिक प्रसिद्ध हैं । इन नृत्य शैलियों में मुख्य अंतर मुखौटों के प्रयोग में देखने को मिलता है । पुरुलिया नाम पश्चिम बंगाल के एक जिले के नाम से पड़ा है । पुरुलिया छऊ रामायण तथा महाभारत की कई कथाओं पर आधारित है । मूलतरू यह एक युद्ध संबंधी नृत्य है । इसका पारम्परिक प्रदर्शन खुले स्थान तथा समतल भूमि पर किया जाता है । पुरुलिया छऊ के मुख्य अवयव विकसित मुखौटे मुकुट चमकीली वेशभूषा लयबद्ध मृदंग वादन और शहनाई हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी -11 | अवधि-23:44 मिनट
ओडिशा में मयूर भंज का छऊ नृत्य भारत की प्रमुख नृत्य शैलियों में से एक है । छऊ शब्द उडिया शब्द ‘छावनी’ सैन्य स्थल से लिया गया है जहां के योद्धा ठहरते हैं और तलवार चलाना सीखते हैं । हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि छऊ शब्द ‘छबी’ (छाया), ‘छाई’ या ‘छत्तक’ (विदूषक) और ‘छाया’ (प्रतिछाया अथवा मुखौटा) जैसे अन्य शब्दों से लिया गया है ।
मयूर भंज छऊ की तकनीक ओजस्वी शारीरिक भंगिमाओं एवं होठों के संचालन पर आधारित है । इन्हें मुख्यत: चाक, धरन, चाली तथा उफली के नाम से पुकारा जाता है । नृत्यों के सीखने के लिए चाक एवं धरन पहली मैलिक खड़ी अवस्थांएं है । ‘चाली’ छऊ नृत्य की लयात्मक चाल जिसका उपयोग नृत्तक नृत्य रंगमंच पर आने के लिए करता है । छऊ नृत्य की प्रस्तुति में पौशाक, वेशभूषा तथा सज्जीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । छऊ संगीत सामान्यत: ढोल, धुम्बां, नगाड़ा, धंसा तथा चड़चड़ी संगीतिय वाद्यों का प्रयोग किया जाता है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -12 | अवधि-30 मिनट
बाउल गीतों में बंगाली लोक संस्कृति में आदर्शों के प्रतीक के रूप में माना जाता है । बाउल में भाट, रचनाकार, संगीतकार, नृत्तक और अभिनेता सभी एक जैसी भूमिका निभाते हैं और उनका उद्देश्य मनोरंजन करना होता है । गीतों, विरामों, हावभावों और मुद्राओं के द्वारा ये खानाबदोष भिक्षु दूर दूर तक के इलाकों में प्रेम और हर्षेान्माद का संदेश फैलाते हैं । पिछली पीढियों के लोग निजी भिक्षा के लिए हाथ में कटोरा एवं एकतारा लिए हुए गाते हुए फकीर को निश्चत रूप से याद रखेंगे । बाउल गीत मे दैवी शक्ति के प्रति दिव्य प्रेम को उजागर किया जाता है ।
बाउल संगीत में कुछ विशेष प्रकार के संगीत वाद्यों का प्रयोग होता है जैसे एकतारा, दोतारा, ढोल, मंजीरा आदि । ये वाद्ययंत्र प्राकृतिक वस्तुओं से बनाये जाते है जैसे मिट्टी, बांस, लकड़ी, आदि और इनके फलस्वरूप मधुर ध्वनियां निकलती है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -13 | अवधि-18 मिनट
बिदेसिया बिहार का एक बहुत मशहूर, गुंजित एवं मन को स्पंदित करने वाली एक कला शैली है । अपने नाम के अनुरूप बिदेसिया में एक महिला व उसके पति से विलगांव की भावना प्रदर्शित होती है । महिला का पति जीविका हेतु दूर देस चला जाता है । इस भावना को शब्दों में अभिव्यक्त करने का कार्य भिखारी ठाकुर द्वारा किया गया था । उन्होंने बिदेसिया के रूप में लीक से हट कर नाटक की रचना की थीए जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । बिदेशिया की प्रस्तुति में मुख्यपात्र हैं – नट और नटी । नट की वेशभूषा रंगीन दोलंगी धोती-कमीज़ तथा पगड़ी होती है । नटी की पारम्परिक भूमिका एक पुरुष पात्र द्वारा की जाती हैए जो घाघरा-चोली पहनती है । इस प्रस्तुति में मंजीरा या झांझ, ढोलक, खंजरी, नगाड़ा तथा हारमोनियम का प्रयोग पैरों द्वारा किया जाता है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -14 | अवधि-28:42 मिनट
तमिलनाडु विविध प्रकार के लोक संगीत तथा नृत्यों में समृद्ध है । इनमें लोकाचार तथा सामान्य व्यक्ति के सौन्दर्यपरक मूल्यों को परिलक्षित करने का एक विशेष संदर्भ होता है जैसा कि वे उनके जीवन, दर्शन, पर्यावरण तथा दिनचर्या से घनिष्ठता से जुड़े हुए होते हैं । इस प्रकार की शैली के अभ्यास के लिए सक्रिय भागीदारी तथा लोकप्रियता आवश्यक है । सौभाग्यवश ऐसे कई कलाकार हैं जिनके पास कौशल का उच्चस्तर है तथा व्यावसायिक क्षमता से युक्त हैं ।
इस कार्यक्रम में जैसे पोइकाल कुदीराई (डमी हार्स डांस) माइल अट्टम (मोर नृत्य) तथा थप्पातट्टम (ढोल नृत्य) आदि शैलियां शामिल हैं । आईलाट्टम ओईल का अर्थ सुन्दरता (सुन्दर नृत्य) हैं । करागम की प्रस्तुति सिर पर एक बर्तन का संतुलन का बनाने के लिए की जाती है । तथा कावड़ी की प्रस्तुति लोगों द्वारा तीर्थयात्रा के दौरान भगवान को भेंट चढ़ाने के लिए छड़ी के किनारे बंधी भेंट को ले जाते समय की जाती है । यह नृत्य उनके रीति-रिवाजों से जुड़े हुए हैं तथा बहुत ही कुशलता के साथ प्रस्तुत किए जाते हैं और ‘ मैरी आम्मा’ (वर्षा देवी) देवी तथा ‘गंगाई अम्मा’ (नदियों की देवी) से संबद्व होते हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी -15 | अवधि-28:26 मिनट
गोटीपुआ नर्तकों द्वारा प्रस्तुत किया जानेवाला बंध नृत्य आज के ओडिसी नृत्य का मूल आधार है । गोटीपुआ सामान्यत: बाल नर्तकों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । गोटीपुआ गुरूकुल अथवा अखाड़ा में सादा जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है । लेकिन उन्हें प्रशिक्षण देने में निष्पा दन कलाओं के प्रत्येक पहलु का ध्यान रखा जाता है जैसे शैक्षिक अध्ययनों के साथ उन्हें नृत्य करना, गाना गाना, पखावज़ बजाना, आदि । गोटीपुआओं के बाल लम्बे होते हैं तथा महिलाओं के परिधान पहने होते हैं । बाल नर्तक कभी भी धातु के बने आभूषणों का प्रयोग नहीं करते हैं । वे मोतियों से जड़े अपने स्वयं के आभूषण बनाते हैं जो भुजाओं, कलाईयों तथा कमर के मखमली कपड़ों पर सिले होते हैं । नृत्य एवं संगीत के अलावा बंध नृत्तिकों को अभिनय मूकाभिनय तथा साहित्य में एक समान महत्त्व दिया जाता है । जैसा कि बंध शब्द का अर्थ बांधना अथवा बंदिश लगाना होता है विभिन्न जटिल मुद्राएं तथा लयात्मक पदध्वनि (ताल), चेहरे के हावभावों के साथ मिलकर नृत्य की एक क्रम बनाते हैं । नृत्य को कलाबाजी शैली में जटिल अवस्थाओं के साथ प्रदर्शित करना बंध नृत्य कहलाता है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -16 | अवधि – 29 मिनट
हिमाचल प्रदेश के बारह जिलों में से एक जिला किन्नौर है । यह शिमला से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर राज्य के उत्तरपूर्वी में सतलुज नदी के किनारों पर स्थित है । इस प्रदेश की भाषा किन्नौरी है । लोक नृत्यों का प्रदर्शन मुख्यत: सामाजिक उत्सवों, रीति-रिवाजों और समारोहों के अवसर पर देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है ।
सीसीआरटी/डीवीडी -17 | अवधि-27:27 मिनट
दांगेर पुत्तुल अथवा भोजवृक्ष की पुतली, भारतीय पुतली रंगमंच की देशज परम्पराओं में सबसे समृद्ध परम्परा के रूप में जानी जाती है । यह परम्परा दक्षिण-पश्चिम बंगाल के सुन्दरबन क्षेत्र में उभरी एवं पनपी । दांगेर पुत्तुल का विषय एवं नाटकीय भाव जात्रा पर आधारित होते है । किसानों, ग्रामिण कलाकारों, लौहारों, मुम्हारों आदि के हाथों में यह विविध नाटकीय तथा रंगमंचीय विचारों के लिए बहुत ही पसंदीदा साधन रही है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 19 | अवधि 21 मिनट
बिहार का नृत्य सराईकेला लयात्मक एवं काव्यात्मक शैली प्रस्तुत किया गया है । नृत्य की यह शैली प्रकृति का प्रतीक है जहां रंगपटल में रात्री अथवा रात ढिबोर या मच्छुआरा जैसे विषय शामिल किए जाते हैं । इसमें वीरोचित तत्वों की अपेक्षा सुक्ष्म तत्वों का संचालन तथा अधिक से अधिक शास्त्रीय संचालनों की ओर एक सामान्य प्रवाह इस शैली का एक विशेष गुण है । इस शैली में लयात्मक संगीत तथा विशेष रूप से हल्की सामग्री जैसे पेपर मशी या लकड़ी से बने मुखौटों का प्रयोग किया जाता है ।
सीसीआरटीध्वीडी – 20 | duration- 20:00 min.
हिमाचल प्रदेश का नाम हिमाचल शब्दसे लिया गया है जिसका अर्थ है बर्फ का घर । ऊँचे और कठोर पहाड़ों तथा पहाडियों के इस प्रदेश में स्थानीय लोग अपनी भावनाओं को गीत और नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं । इन नृत्यों में से एक प्रसिद्ध नृत्य है नाटी नृत्य । इसे उसकी मधुर ताल एवं मनोहारी संगीत के लिए जाना जाता है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 21 | अवधि 23 मिनट
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है – गोवा, जो अनेक पर्यटकों को अपने सुन्दर समुद्र तटों और हरी-भरी छटा की ओर आकर्षित करता है । पुर्तगालियों ने इसे 1510 ई.प. में जीतकर अपने साम्राज्य की व्यापारिक राजधानी बनाया । धीरे-धीरे आस-पास के क्षेत्रों पर भी उन्होंने नियंत्रण कर लिया और शहर से लगे पश्चिमी तट पर होने वाली अधिकांश व्यापार प्रणाली को विकसित किया । पुर्तगाली न केवल व्यापार में रूचि रखते थे बल्कि वे ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए भी आए थे । पुर्तगाली शासन होने पर अनेक धर्म और जीवन शैली का गहरा प्रभाव गोवा की संस्कृति पर पडा । पुर्तगालियों ने आते ही वेल्हा गोवा (ओल्ड गोवा) को तैयार किया जो ‘ पूर्व का रोम’ (रोम ऑफ ओरियन्ट) नाम से उनकी राजधानी के रूप में जाने लगा । शानदार चर्चों का भी निर्माण किया गया । आज भी पुरानी उस भावना का ही वातावरण देखा जा सकता है कि गोवा एक छोटे पुर्तगाल की भांति दिखता होगा । गोवा के चर्चों और मठों में यूरोप की कला को सुन्दरता से प्रदर्शित किया गया है । ये स्मारक हमारी सांस्कृतिक विरासत के अभिन्न अंग बन गये हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 22 | अवधि 22 मिनट
विष्णुपुर किसी समय 17वीं से 18वीं शताब्दी तक बंगाल के मुल्ला शासकों की राजधानी के रूप में फलाफूला था । जो मुल्ला इतिहास के सबसे समृद्व काल में वीर हम्बीर से शुरू होता जो अकबर का समकालीन था, यह उसी का शासन था जब उस समय के बचे हुए मन्दिरों में से सर्वप्रथम एक का निर्माण विष्णुपुर में करवाया गया था । वर्तमान में तीस इंटों तथा पत्थरों से बने मंदिर जो विभिन्न आकृति और योजना लिए हुए हैं इस बड़े क्षेत्र में चारों ओर फैले हुए हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 23 | अवधि 18 मिनट
बालुचरि बंगाल की कपड़ा बुनाई की एक अत्यधिक लोकप्रिय तकनीक है । साडियों पर रामायण और महाभारत की पौराणिक अथवा दंत कथाओं को प्रदर्शित किया गया है । ये कथाएं डिजाईन का एक भाग बनती है एवं लोकप्रिय लोक साहित्य के दृश्य चित्रांकन को भी प्रस्तुत करती प्रतीत होती है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 24 | अवधि 24 मिनट
मुगल बादशाह अकबर जब शासक बनाए उस समय वह केवल चौदह वर्ष का था लेकिन तेईस वर्ष की उम्र में उसने आगरा में मौजूदा लोदी किले का पुनरूद्धार और आगरा के ‘अकबरा बाद किले’ का निर्माण आरम्भ करके स्थापत्य कला (वास्तु कला) में प्रथम अभूतपूर्व कार्य किया । यह किला भारतीय उप-महाद्वीप के मैदानों में सबसे मजबूत किला माना जाता है । आगरे का किला तीन किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ है और लाल बालू पत्थर से बनी दोहरी दीवार से घिरा हुआ है जिस पर मीनारें, प्राचीर, झरोखें एवं छज्जें बने हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 25 | अवधि 20 मिनट
कोणार्क बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है । मंदिर एक विशाल पत्थर के रथ का स्वरूप (डिजाईन) लिए हुए है । ऐसा लगता है जैसे किसी विशाल मंदिर रूपी रथ को आसमान के पार खींचा जा रहा हो । जैसे सूर्य समय को नापता है, मंदिर भी प्रतीक स्वरूप इसी विषय वस्तु को लिए हुए है । इसके बारह पहिये वर्ष के बारह महीनों प्रतीक हैं और इसके पहिये की सोलह तीलियां दिन के समय का प्रतीक हैं । आज भी कोणार्क अपनी प्रतिष्ठा लिए उन हजारों कलाकारों का प्रतिनिधित्व करता दिखता है जिन्होंने सोलह वर्षों के लंबे समय तक इस पर कार्य किया था ।
सीसीआरटी/डीवीडी – 26 | अवधि 45 मिनट
यद्यपि संगीत के घराने प्रत्येक संगीतकार के दिल के बहुत करीब हैं तथापि इनका प्रणालीबद्ध अध्ययन कम ही हो पाया है । घराने की संकल्पना अनेक संगीत प्रेमियों के लिए एक पहेली है । घराना स्कूल या सामान्य परम्परा से प्रेरित अथवा किसी सामान्य शैली से प्रभावित कलाकारों के समूह नहीं हैं । अपनी मनोवृत्ति में किसी एक परम्परा से जुड़े और अभिवृत्ति में घराने खून के रिश्तों से सम्बंधित अपने ही परिवारों के अधिक सदृश होते हैं । कार्यक्रम में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के आगरा घराना की परम्पराओं और मान्यताओं का गहन रूप से प्रस्तुतीकरण किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी – 27 | अवधि 39 मिनट
यद्यपि संगीत के घराने प्रत्येक संगीतकार के दिल के बहुत करीब हैं तथापि इनका प्रणालीबद्ध अध्ययन कम ही हो पाया है । घराने की संकल्पना अनेक संगीत प्रेमियों के लिए एक पहेली है । घराना स्कूल या सामान्य परम्परा से प्रेरित अथवा किसी सामान्य शैली से प्रभावित कलाकारों के समूह नहीं हैं । अपनी मनोवृत्ति में किसी एक परम्परा से जुड़े और अभिवृत्ति में घराने खून के रिश्तों से सम्बंधित अपने ही परिवारों के अधिक सदृश होते हैं । कार्यक्रम में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के आगरा घराना की परम्पराओं और मान्यताओं का गहन रूप से प्रस्तुतीकरण किया गया है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 28 | अवधि 29 मिनट
अवध क्षेत्र की कहार, कुम्हार, अहीर, गड़रिया और दलित जातियों का नृत्य- संगीत ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 29 | अवधि 22 मिनट
अरूणाचल प्रदेश सुन्दर प्राकृतिक छटा की भूमि है एवं समृद्व सांस्कृतिक धरोहर से परिपूर्ण है । इस समृद्ध परम्परा का उद्भव एवं विकास उन विभिन्न जन-जातियों के मिलन से हुआ है जो वर्षों से यहां आकर एकत्रित हुईं । इन जन-जातियों में सबसे महत्वपूर्ण है, ‘अपतानी’ जिसे मछली और धान की संस्कृति के लिए जाना जाता है । इनका सुन्दर बेंत और बांस का कार्य इनके कार्य कौशल का उदाहरण है । इसी प्रकार इनके समूह में प्रस्तुत होने वाले नृत्य बहुत ही आकर्षक एवं मंत्र मुग्ध करने वाले होते हैं ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 30 | अवधि 23 मिनट
बुंदेलखंड की गहरी एवं संकरी घाटियों के बीच स्थित है – खजुराहो एक समय में मध्यकाल के प्रारम्भ में चंदेलों की राजधानी रहा है । आज भी ये मंदिर चंदेल शासन की सम्पन्नता और समृद्धि की गवाही दे रहे है और ये कला तथा मंदिर वास्तुकला की अपनी बेजोड़ व अनुपम शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं । कोई भी पर्यटक खजुराहो की प्रशंसा अनेक प्रकार से कर सकता है । विद्वान के रूप में कला के जानकार के रूप में सामाजिक इतिहासकार के रूप में अथवा सामान्य व्यक्ति विशेष के रूप में जिन्हें चंदेल शासन के कुशल कलाकारों द्वारा सम्बंधित युग के धार्मिक समीकरण अन्तर सम्बंध और जीवन की जटिलताओं को बडी खूबसूरती से मूर्तिकला के माध्यम से उकेरा गया है । खजुराहो के मंदिर ऐसे लगते हैं मानों शिव और पार्वती के समागम समारोह में वे नतमस्त हों जो जीवन का अंतिम लक्ष्य है । यूनेस्को ने वर्ष 1986 में खजुराहों की विश्व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 31 | अवधि 35 मिनट
कलारिपट्टू केरल की एक युद्ध सम्बंधी कला है जो विश्व में विद्यमान सबसे पुरानी युद्ध सम्बंधी कलाओं में से एक है । यह मानव और उसकी विजय भावन को मंच नाटक संगीत और क्रियान्वयन द्वारा प्रस्तुत करने की कला है । कला में अर्थात युद्धकला के व्यायाम सीखने का स्थान शिष्यगण पयाटु कला ( युद्ध) को सात वर्ष की आयु में ही सीखना शुरू कर देते हैं । वर्षों के अनुशासन और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है ताकि तन और मन प्रशिक्षित हो सकें । जब तन और मन आन्तरिक दृष्टि से एक हो जाते हैं तब शांति का आर्शीवाद प्राप्त होता है । केरल की ओजस्वी गाथा (गाथा गीत) पयाटु के नायकों की दंतकथा यशोगान पर आधारित है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- – 32 | अवधि 34 मिनट
(ओजस्वी गाथा गीत) मोहिनी अट्टम केरल की एक एकल नृत्य परम्परा है जिसमें एक सुन्दर बालिका निरंतर लालित्य के साथ ईश्वर से सम्पर्क स्थापित करते हुए नृत्य प्रस्तुत करती है । प्रकृति स्वयं को नृत्य और संगीत के द्वारा मंदिर की देवी को समर्पित करती है । यह गाथा गीत मंदिर के अनुष्ठान के भाग के रूप में देवदासियों की परंपरा से जुडे हुए मंदिर के विशेष स्थान में विकसित हुआ । इसका मूल भाव श्रृंगार भक्ति और स्त्री सुलभ गतियों को प्रस्तुत करना है । यह नृत्य कला मुख्यत: आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के लिए बनी एक कला है । पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त मोहिनीअट्टम में प्रकृति से जुड़ी विषयवस्तु की श्रृंखला भी है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 33 | अवधि 45 मिनट
‘आजादी के गीत’ एक ऑडियो (श्रव्य) कैसेट है जिसमें स्वतंत्रता संग्राम पर 13 गीत संकलित हैं । कुछ गीत हैं – वंदे मातरम, सरफरोशी की तमन्ना, कदम-कदम बढ़ाये जा, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, आदि । आजादी के गीतों पर संकलित पुस्तिका (बुकलैट) देश भक्ति के गीतों की सामान्य जानकारी पूर्ण मूल पाठ और उनका लिप्यान्तरण (ट्रांसलिटरेशन) प्रस्तुत करती है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 34 | अवधि 45 मिनट
‘माई प्लेज टू फ्रीडम’ एक ऑडियो (श्रव्य) कैसेट है जिसमें जाने-माने स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रीय नेताओं द्वारा दिए गए भाषणों को संकलित किया गया है उदाहरण के लिए महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरोजिनी नायडू, आदि । ‘माई प्लेज टू फ्रीडम’ पर बनाई गई पुस्तिका (बुकलैट) से राष्ट्रीय नेताओं और उनके प्रसिद्व भाषणों के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त होती है ।
सीसीआरटी/डीवीडी- 35 | अवधि 45 मिनट
‘राष्ट्रीय गीत’ एक ऑडियो (श्रव्य) सीडी है जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं के गीतों का संकलन किया गया है जो शिक्षकों और छात्रों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है । राष्ट्रीय एकता की भावना को सुदृढ़ करने संगीत और विभिन्न भाषाओं में निहित सौन्दर्य के प्रति सराहना की भावना विकसित करने हेतु विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं के गीतों का चयन किया गया है ।
क्रमांक | श्रव्य-दृश्य सामग्री का शीर्षक | मूल्य रूपयों में |
---|---|---|
सीसीआरटी/डीवीडी-1 | ओडिसी नृत्य भाग । | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-2 | ओडिसी नृत्य भाग - ।। | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-3 | रामायण बालकाण्ड (भरतनाटयम नृत्य भाग-।) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-4 | रामायण बालकाण्ड (भरतनाटयम नृत्य भाग-।।) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-5 | सिक्किम के लोक नृत्य | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-6 | जैसलमेर (सुनहरी नगरी) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-7 | केरल के गुरूकुल | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-8 | रास (मणिपुरी नृत्य) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-9 | महाबलीपुरम (विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-10 | पुरूलिया छऊ | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-11 | मयूर भंज छऊ | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-12 | बाउल | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-13 | बिदेसिया (बिहार) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-14 | तमिलनाडु की लोक कला शैलियां | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-15 | बंध नृत्य (ओडिशा) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-16 | शैल तरंग (किन्नौर के लोक नृत्य) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-17 | दांगेर-पुत्तुल | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-18 | सराईकेला छऊ | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-19 | नाटी नृत्य (हिमाचल प्रदेश) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-20 | गोवा के चर्च और मठ (विश्व सांस्कृतिक रोहर स्थल) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-21 | भित्ति चित्र (विष्णुपुर टेराकोटा के मंदिर) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-22 | कपड़ा बुनाई की कहानियां (बालुचरि सारीज़) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-23 | आगरे का किला | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-24 | कोणार्क (दी ब्लै क पगोडा) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-25 | आगरा घराना (भाग-।) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-26 | आगरा घराना (भाग-।।) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-27 | करिंगा (उत्तर प्रदेश) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-28 | अरूणाचल प्रदेश का अपतानी जनजाति | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-29 | खजुराहो (विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-30 | कलारिपट्टू (केरल की आत्मरक्षार्थ कला) | 150/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-31 | मोहिनी अट्टम | 150/- |
ऑडियो सीडी | ||
सीसीआरटी/डीवीडी-18 | आजादी के गीत राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के गीत | 100/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-19 | 'माई प्लेज टू फ्रीडम' | 100/- |
सीसीआरटी/डीवीडी-20 | राष्ट्रीय भाषाओं के गीत भाग 1, 2 व 3 | 150/- |
1. उपर्युक्त सामग्री की आपूर्ति सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली उदयपुर हैदराबाद तथा गुवाहाटी में उपलब्धिता के आधार पर की जाएगी ।
2. सामग्री को डाक से भेजने के लिए डाक और हैंडलिग प्रभार वास्तविकता के अनुसार अतिरिक्त होगा ।
3. आदेशित सामग्री का भुगतान या तो नगद में अथवा निदेशक सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली के पक्ष में डिमाण्ड ड्राफ्ट के द्वारा किया जा सकता है ।
4. व्यापारिक पूछताछ के लिए संपर्क करें
सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली
15-ए, सैक्टर-7, द्वारका
नई दिल्ली-110075
फोन नं. (011) 25309300 एक्स. 340
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