एन.ई.पी-2020 के अनुरूप शिक्षा में पुतलीकला की भूमिका
विश्व के अधिकांश भागों में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में पुतली कला ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । यह पुतली कला, साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, नाटक जैसी सभी कला शैलियों के तत्वों को आत्मसात करती है और छात्रों की रचनात्मक क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम बनाती है । भारत में पारंपरिक रूप से पुतली कला को भारतीय पुराणों और दंत कथाओं के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लोकप्रिय व सस्ते माध्यम के स्वरूप प्रयोग में लाया जाता रहा है । चूंकि पुतलीकला एक गतिशील कला शैली है, जो सभी आयु वर्गों के लिए उपयुक्त है, अतः इस संचार माध्यम को स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने की सहायक सामग्री के रूप में चुना गया है । सीसीआरटी विविध औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षण परिस्थितियों में प्रयुक्त किए जा सकने वाले पुतली कार्यक्रमों को तैयार करने, चलाने और निर्मित करने में व्यापक तथा समेकित प्रशिक्षण प्रदान करता है ।
कायर्शाला के उद्देश्य
• पुतली कला को शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में परिचित कराना ।
• विविध प्रकार की पुतलियाँ बनाना तथा उन्हें चलाने का तरीका सिखाना ।
• पुतली कला के माध्यम से शिक्षण पाठ्यक्रम के विषयों के लिए शैक्षिक आलेखों तथा कार्यक्रमों को तैयार कराना ।
• भारत की परम्परागत पुतलीकलाओं से अवगत कराना तथा पुतलीकारों से मिलने का अवसर प्रदान करना जिससे कि प्रतिभागी शिक्षक/शिक्षिकाएं भारतीय पुतलीकला के ज्ञान को अर्जित करने में सक्षम हो सकें ।
• शिक्षक/शिक्षिकाओं को सस्ती शैक्षिक सामग्री के निर्माण के लिए प्रोत्साहित करना तथा उनसे छात्रें के लिए कक्षा की पढ़ाई के अभिन्न भाग के रूप में रचनात्मक गतिविधियाँ करवाना ।