विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश
शिक्षा को सभी स्तरों पर सामाजिक परिवर्तनों का एक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है । आज देश में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य लोगों को लोकतांत्रिक, समाजवादी, सर्वधर्म समभाव समाज के लिए तैयार करना है। शैक्षिक संस्थानों में ‘विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश’ कार्यान्वित करने का उद्देश्य इसी लक्ष्य की प्राप्ति करना है । इसलिए यह विद्यालय पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग ही नहीं है, बल्कि विद्यालय पाठ्यक्रम के अन्य विषयों से भी संबंध रखता है ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, शिक्षा को संस्कृति के साथ जोड़ने का मूल उद्देश्य, बच्चों में निहित प्रतिभा को खोजना एवं उसको रचनात्मक रूप से अभिव्यक्त करना है । इसकी प्राप्ति सीखने-सिखाने की प्रक्रिया एवं पाठ्यक्रम के पुनः अनुस्थापन तथा अध्यापकों को विभिन्न स्तरों पर विद्यार्थियों के साथ संबंध स्थापित करने की अभिप्रेरणा द्वारा हो सकती है ।
हमारे देश की हस्तकलाएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर की अमूल्य देन हैं, जो मानव के सौन्दर्य-बोध की आवश्यकता एवं अभिव्यक्ति की जिज्ञासा का माध्यम है । हस्तकलाओं का वास्तविक महत्त्व प्रत्येक वस्तु के नयेपन व उपयोगिता में निहित है ।
आज हम न केवल अपनी प्राचीन धरोहर खो रहे हैं, बल्कि सामाजिक संरचना के आवश्यक तत्त्वों का भी ह्रास हो रहा है, जो समाज को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है । ‘विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश’ देश की समृद्ध धरोहर एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के पुनर्गठन और इनको पुनः जीवित करने के अवसरों को प्रदान करता है तथा विद्यार्थियों में रचनात्मकता को भी प्रोत्साहित करता है । ‘विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश’ कार्यशाला के दौरान अध्यापक 3-4 शिल्पकलाओं को गहन रूप से सीखते हैं । सामान्यतः मिट्टी के बर्तन बनाना, मिट्टी के खिलौने बनाना, पेपर मेशी, मुखौटे बनाना, बांधनी, रंगोली, बेंत का कार्य, जिल्दसाजी, कागज के खिलौने बनाना आदि शिल्पकलाएं सिखाई जाती हैं । सांप्रदायिक सद्भाव की चेतना और सभी भाषाओं के प्रति सम्मान की भावना को जागृत करने के लिए राष्ट्रीय भाषाओं में गीत सिखाने के लिए भी कक्षाएं आयोजित की जाती हैं । भारतीय हस्तशिल्प एवं संस्कृति से संबंधित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान तथा स्लाइड-प्रदर्शन किए जाते हैं, शिल्प में सौन्दर्य बोध पर विशेष बल दिया जाता है तथा पाठ्यक्रम शिक्षण में रचनात्मक गतिविधियों हेतु सीसीआरटी की शैक्षिक सामग्री का उपयोग किए जाने पर भी सत्र आयोजित किए जाते हैं ।
कार्यशालाओं के उद्देश्य
• भारतीय शिल्प-कलाओं के प्रति रुचि जागृत करना और समकालीन जीवन में उनकी प्रासंगिकता का अध्ययन करना ।
• स्थानीय शिल्पकला संसाधनों के महत्त्व को जानने में शिक्षक/शिक्षिकाओं की मदद करना ।
• कार्यशाला के दौरान उत्पन्न नई जागृति के साथ विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश, पाठ्यक्रम के प्रतिपादन हेतु शिक्षकों/शिक्षिकाओं का मार्गदर्शन करना ।
• शिल्पकारों की जीवन-शैली के बारे में जानकारी हासिल करना और समाज में उनकी भूमिका की पहचान स्थापित करना ।
• शिक्षक/शिक्षिकाओं के मन में शिक्षा के मूल्य का महत्त्व बिठाना, सांस्कृतिक शिक्षा प्रदान करना और उन्हें ऐसी परियोजनाएँ बनाने व फ़े लिए सुझाव देना, जिनका सामुदायिक कल्याण के कार्य के दौरान उपयोग हो सके ।
• श्रम की महत्ता को समझाना ।
• भारतीय संस्कृति के प्रति सौंदर्यबोध की प्रासंगिकता जागृत करना ।