विश्व के अधिकांश भागों में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में पुतली कला ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । यह पुतली कला, साहित्य, चित्रकला, शिल्प कला, संगीत, नृत्य, नाटक जैसी सभी कला शैलियों के तत्वों को आत्मसात् करती है और छात्रों को रचनात्मक क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम बनाती है । भारत में पारंपरिक रूप से पुतली कला को भारतीय पुराणों और दंत कथाओं के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लोकप्रिय व सस्ते माध्यम के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है ।
चूंकि पुतलीकला एक गतिशील कला शैली है, जो सभी आयु वर्गों के लिए उपयुक्त है, अत: इस संचार माध्यम को स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने की सहायक सामग्री के रूप में चुना गया है । सीसीआरटी विविध औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षण परिस्थितियों में प्रयुक्त किए जा सकने वाले पुतली कार्यक्रमों को तैयार करने, चलाने और निर्मित करने में व्यापक तथा समेकित प्रशिक्षण प्रदान करता है ।
प्रत्येक पाठयक्रम में पुतली कला को शिक्षा की सहायक सामग्री के रूप में प्रस्तुत करने पर विशेष महत्व दिया जाता है । शिक्षा के क्षेत्र में पुतली कला की प्रभावात्मकता, पूर्ण किए उद्धेश्यों के संदर्भ में कक्षा में शिक्षण सिखाने के अनुभव के रूप में पुतली कला, समय तथा धन के संसाधनों व सीमितताओं को ध्यान में रखते हुए आवश्यक संसाधनों आदि पर प्रशिक्षणार्थियों के बीच खुली चर्चा की जाती है । शिक्षा के क्षेत्र में पुतली कला का विशेष महत्व है, क्योंकि इसके माध्यम से बच्चों में कल्पना शक्ति, रचनात्मकता तथा अवलोकन कुशलताओं को विकसित करने में सहायता मिलती है ।
अध्यापकों को पुतली कला की परंपरागत शैलियों से अवगत करने हेतु देश के विभिन्न भागों से समय-समय पर परंपरागत कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है । प्रशिक्षणर्थियों को देश के सभी भागों में विद्यमान पुतली नाटक की विभिन्न शैलियों से परिचित कराने हेतु भारत की परंपरागत पुतली नाटय कला पर व्याख्यान-प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं । अध्यापकों को कागज की पुतलियों जैसे:- उगली-पुतली, मुखौटे तथा छड़ पुतलियों को बनाना और चलाना सिखाया जाता है । पेपर मैशी (कुट्टी) से पुतलियों के सिर बनाने और कागज चिपकाने की अन्य कार्य प्रणलियों भी अध्यापकों को सिखाई जाती है ।
अध्यापकों को बताया जाता है कि कक्षा में सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता और शैक्षिक संकल्पनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु आसानी से उपलब्ध तथा बेकार सामग्री से सरल पुतलियों का निर्माण करना पाठ्यक्रम का उद्देश्य है । इन सभी पुतलियों का परिचालन (मेनीपुलेशन) प्रत्येक क्रियात्मक सत्र के पश्चात् साथ-साथ सिखाया जाता है । अध्यापक इन विभिन्न प्रकार की पुतलियों की सहायता से शैक्षिक पुतली कार्यक्रम तैयार करना सीखते हैं ।
अध्यापकों की संप्रेषण कुशलताओं को संबद्ध करने हेतु चित्रकारी, मुकाभिनय रचनात्मक या सृर्जनात्मक लेखन, रचनात्मक भाषण, संवाद प्रस्तुति, स्वर परिवर्तन आदि पर विशेष सत्र आयोजित किए जाते हैं । एक उत्तम शिक्षाप्रद संदेश, पुतली नाटक का हृदय (बीज कोष) है । पुतली नाटकों हेतु आलेखों के लेखन को बहुत महत्व दिया जाता है । दर्शकों के वर्ग के अनुसार पुतली नाटकों हेतु उपयुक्त विषय-वस्तु सुझाई जाती है और प्रशिक्षणार्थियों द्वारा तैयार की गई प्रत्येक कहानी पर चर्चा सत्रों के पश्चात् कुछ अच्छी कहानियों का चयन किया जाता है ।